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भारत के संविधान में भगवान राम

यूं तो राम कण-कण में हैं लेकिन भगवान राम का हमारे संविधान से भी खास कनेक्शन हैं। रामनवमी के अवसर पर हम अपने संविधान की मूल प्रति में बनाई गई राम की तस्वीर और उसके बारे में जानकारी दे रहे हैं। संविधान की यह मूल प्रति संसद में सुरक्षित रखी हुई है।भारत के संविधान की मूल प्रति में मौलिक अधिकारों से जुड़े अध्याय के आरम्भ में एक स्केच है। यह स्केच मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण का है। बताया जाता है कि यह तस्वीर लंका में रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या वापसी का है। श्रीराम भारत के सांस्कृतिक, नैतिक और राजनैतिक मूल्यों के आदर्श रहे हैं। उनका व्यक्तित्व एवं जीवन दर्शन हमारे संवैधानिक मूल्यों के समरूप हैं। बताया जाता है कि जब देश के संविधान लिखा जाने अंतिम चरण में था तब इसकी मुख्य प्रतिलिपि में कलाकृतियों को लेकर चर्चा हुई थी।दरअसल, जब भारत का संविधान तैयार हुआ तो उन हस्तलिखित पृष्ठों में ऊपर-नीचे बहुत जगह खाली छूटी हुई थी। ऐसे में इस पर विचार हुआ कि आखिर किस तरह इस खाली जगह के जरिए भारत की 5,000 साल पुरानी संस्कृति को प्रदर्शित किया जाए। तब खुद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ही इस काम के लिए नंदलाल बोस को शांतिनिकेतन जाकर आमंत्रित किया था। इसके बाद इस महान चित्रकार ने अपने कुछ शिष्यों के साथ मिलकर संविधान के इन हस्तलिखित पन्नों में प्राण भरने का काम किया और बाद में संविधान सभा से जुड़े सभी लोगों ने इन चित्रों को संविधान के रिक्त स्थान पर शामिल करने पर सहमति देते हुए उस पर हस्ताक्षर किए।

श्रीकृष्ण के साथ अन्य लोगों की भी तस्वीरें

हमारे देश के संविधान में भगवान श्रीराम के साथ ही इतिहास के चुनिंदा महात्मा, गुरुओं, शासकों के साथ ही पौराणिक पात्रों के चित्र बनाए गए हैं। इन्हें संविधान के अलग-अलग पन्नों पर जगह दी गई है। संविधान में दिए गए 22 चित्र भारत के गौरवशाली विरासत का संदेश देता है। संविधान में भगवान श्रीराम के अलावा गीता का उपदेश देते श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन, टीपू सुल्तान, नटराज, भगवान बुद्ध, लक्ष्मीबाई, वीर शिवाजी, मुगल सम्राट अकबर के साथ ही गंगा मैया और इसे धरती पर लाने वाले भागीरथ को भी स्थान दिया है।

संविधान के पन्नों पर 22 तस्वीरें

संविधान जब लिखा गया तो उसमें पन्नों पर कई जगह खाली थी। ऐसे में आम सहमति से इन जगहों पर चित्र बनाने का फैसला लिया गया। इन चित्रों को बनाने की जिम्मेदारी उस समय के मशहूर चित्रकार और शांति निकेतन से जुड़े नंदलाल बोस को दी गई। नंदलाल बोस और उनके शिष्यों ने 22 चित्रों के अलावा संविधान के पन्नों के किनारों को भी डिजाइन किया। संविधान को बनाने में दो साल 11 महीने और 18 दिन का समय लगा था। हालांकि, उसे लिखने में छह महीने का समय लगा। संविधान सभा के 284 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान पर हस्ताक्षर किए थे। मूल संविधान में दस पेज पर सभी लोगों के हस्ताक्षर हैं।संविधान की मूल प्रति देखें तो आज भी वहां श्रीराम, महाभारत में श्रीकृष्ण-अर्जुन, बुद्ध, यज्ञशाला आदि की तस्वीरें चित्रित हैं। आखिरी पृष्ठ पर संविधान सभा के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर हैं। हस्ताक्षरों की यह सूची इस सहमति को भी दर्शाती है कि नंदलाल बोस ने इन कलाकृतियों में धर्म विशेष नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास की विकास यात्रा को दर्शाने वाले चित्र बनाए थे और जाहिर सी बात है कि इस उद्देश्य की पूर्ति इन जननायकों के बिना अधूरी है। उन्होंने झांसी की रानी, टीपू सुल्तान, अशोक की लाट जैसे चित्रों के जरिए, इसमें निहित अनुच्छेदों से सामंजस्य स्थापित किया। भारत के नागरिकों को गौरवशाली अतीत की थाती सौंपी और देश की सनातन संस्कृति को भी जीवंत रखा।

भारतीय संविधान की चेतना भी हैं श्रीराम

 संविधान की मूल प्रति पर श्रीराम के चित्र का अंकन है। चित्र में माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ लंका विजय के बाद अयोध्या पहुंचने का दृश्य है। यह रामराज्य के सपनों को साकार करने के दृढ़निश्चय और उसकी ओर प्रयाण की अभिव्यक्ति है। राम संविधान के पन्ने पर केवल प्रतीकात्मक रूप से ही चित्रित नहीं हैं, वह भारतीय संविधान की चेतना हैं। वह संविधान के आदर्शों में समाए हुए हैं। संविधान राजनीतिक सुशासन के सपनों का पथ प्रदर्शक है और विधायी मर्यादा का रक्षक भी।श्रीराम का दयालु एवं निष्पक्ष व्यक्तित्व सर्वविदित है, साथ ही रामराज्य की परिकल्पना में भी मानव जीवन के ये भाव आत्मसात हैं। श्रीराम ने जातिगत भेदभाव किए बिना निषादराज गृह से मित्रता की थी। उन्हें वही सम्मान दिया जो उनके बाकी राजमित्रों को मिला। रघुनंदन ने शबरी माता के जूठे बेर स्वीकारे। एक राजा के रूप में वह अपनी प्रजा को समान रूप से देखते हुए उनके अधिकारों के संरक्षक थे। उस समय की व्यवस्था के अनुसार वह स्वयं भी राजधर्म एवं मानवधर्म से परिबद्ध थे। शक्तिशाली, लोकप्रिय एवं राजा होने के बाद भी श्रीराम ने कभी निर्धारित नियमों का उल्लंघन नहीं किया और न ही स्वयं को धर्म से ऊपर रखा।यह स्वीकारना गलत नहीं होगा कि भारत के सांस्कृतिक, नैतिक और राजनैतिक मूल्यों के आदर्श श्रीराम का व्यक्तित्व एवं जीवन दर्शन हमारे संवैधानिक मूल्यों के समरूप हैं। अतएव यह चित्रण इस विश्वास से किया गया कि भारतीय संविधान के लागू होते ही, समस्त अधीन प्रजाजनों को उनके मौलिक अधिकार प्राप्त होंगे।

मर्यादा पुरुषोत्तम राम का प्रभाव उसमें हर जगह दृष्टिगोचर होता है। राम का चित्र मूलभूत अधिकारों के अध्याय के पहले पृष्ठ पर है। लंबे संघर्ष के बाद देश के नागरिकों को आजादी की खुली हवा में सांस लेने का अवसर मिला था। मौलिक अधिकारों के माध्यम से रामराज्य की परिकल्पना को स्वर मिला था। सभी नागरिकों को बराबरी का मौका मिला था। अनुच्छेद 14 के माध्यम से सभी तरह के भेदभावों से मुक्ति मिली थी। यह सुनिश्चित किया गया कि संविधान के सामने गरीब और अमीर, शक्तिशाली अथवा कमजोर सभी समान होंगे। अनुच्छेद 21 द्वारा सभी को गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करने और सरकार की गैरकानूनी दखलंदाजी से रक्षा का अधिकार मिला। यह चित्र इन सभी भावों का पूंजीभूत स्वरूप है।राम लोकशाही के जीवंत प्रतीक हैं। वह अपने लोगों से कहते हैं, ‘जौ अनीति कछु भाखहुं भाई, मुझको बरिजहुं भय बिसराई।’ अर्थात राज्यवासियों यदि मैं अनीति की बात कहूं तो आप बिना किसी भय के मुझे तुरंत रोक दीजिए। राम ऐसे शासक हैं, जो यह मानकर चलते हैं कि उनसे भी गलती हो सकती है। इससे आगे बढ़कर वह अपनी प्रजा को यह अधिकार भी देते हैं कि वह अपने राजा को गलती करने से रोक दे। राज्यव्यवस्था का यह उच्चतम आदर्श है। हमारा संविधान यही आजादी अपने देशवासियों को देता है। यदि कोई शासक नीति विरुद्ध कुछ करता या कहता है तो उसे संविधान के अनुच्छेद 19(1) क के अंतर्गत अपनी बात कहने का अधिकार है।

विकल्प के रूप में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय भी जाने का अधिकार है। फिर पांच वर्षों की प्रतीक्षा के बाद चुनाव के माध्यम से सरकार बदलने का भी अधिकार है। हमारा संविधान भी राम के आदर्शों की तरह सभी को भयमुक्त होकर अपनी बात कहने और यहां तक कि शासक बदलने का अधिकार भी देता है। संविधान अपने नागरिकों से जो अपेक्षा करता है, वही सब कुछ रामराज्य में लोगों के आचरण में शामिल था। संविधान के मूल कर्तव्यों के अनुच्छेद 51(क)(ङ) में हर नागरिक से अपेक्षा की जाती है कि आपस में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करे, जो हर तरह के भेदभाव से परे हो। रामराज्य का वर्णन करते हुए तुलसीदास जी कहते हैं, ‘बयरू न कर कहूं सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।’

हमारा संविधान एक लोक कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना करता है और राज्य से अपेक्षा करता है कि वह अपनी नीतियां इस तरह बनाए कि आम लोगों का जीवनस्तर ऊंचा उठे, सभी को रोजी-रोटी के साधन उपलब्ध हों और सभी को चिकित्सा सुविधाएं मिलें, ताकि सब रोगमुक्त हों। संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के अध्याय-पांच के अनुच्छेद 38, 39, 40 सहित कई उपबंध इसी तरह के उदात्त उद्देश्यों को प्राप्त करने का आह्वान करते हैं। इन आदर्शों और रामराज्य में भावतः यही बात कही गई है। रामराज्य में कोई विषमता नहीं है, सभी समान हैं, सभी स्वस्थ और प्रसन्न हैं। तुलसीदास जी के शब्दों में, ‘दैहिक दैविक भौतिक तापा, रामराज्य कहुं विधि नहिं व्यापा।’कानून का शासन हमारे संविधान की आधारशिला है। इसमें व्यक्ति कानून के ऊपर नहीं है, अपितु कानून व्यक्ति के उपर है। शासक का अधिकार उसकी स्वेच्छाचारिता से नहीं, अपितु संविधान के दिशानिर्देशों से तय होता है। इसमें व्यक्ति को नहीं, अपितु संविधान को अधिक महत्व दिया गया है। इसलिए व्यक्ति की स्वेच्छाचारिता के लिए कोई जगह नहीं है। संविधानसम्मत व्यवस्था से इतर हटकर शासन सूत्र अपने हाथ में लेने की कल्पना भी नहीं की जाती और इसीलिए 14 वर्ष की अवधि के बाद राम के अयोध्या वापस आने पर सत्ता उन्हें सौंप दी जाती है। यह लोकशाही का सर्वोच्च स्वरूप है, जिसमें कानून का शासन अपने जीवंत मानवीय रूप में प्रकट होता है। स्पष्ट है कि राम के आदर्श और उनके अनुगामियों के आचरण में भारतीय संविधान के कानून के शासन की परिकल्पना आत्मसात कर ली गई है।

राम संवैधानिक नैतिकता के शलाका पुरुष हैं। यह संविधानवाद के आचरण की उच्चतर अवस्था है। नैतिकता का पालन कमजोर व्यक्ति के वश में नहीं होता। इसका पालन नैतिक रूप से बलशाली व्यक्ति ही कर सकता है। राम दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र हैं। प्रचलित व्यवस्था के अनुसार वही राज्य के उत्तराधिकारी हैं। उनके राजतिलक की घोषणा हो चुकी है। अगले दिन वह राजा बनने वाले हैं, किंतु वचन बाध्यता से जुड़े महाराज दशरथ के निर्देश अनुसार उन्हें वन जाना है और उनके छोटे भाई भरत को राजगद्दी मिलनी है। नैतिकता के उच्च आदर्शों का पालन करते हुए वह वनगमन करते हैं और भाई भरत के आग्रह के बावजूद 14 वर्ष पूरे होने से पहले अयोध्या नहीं आते। हमारा संविधान हम सभी से इसी तरह की नैतिकता की अपेक्षा करता है। अयोध्या में राम के मंदिर के निर्माण के साथ ही हमें उस रामराज्य के सपने को वास्तव में साकार करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा, जिसका लक्ष्य है सबको न्याय और सबका कल्याण।भारत का संविधान देश को संप्रभु, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतांत्रिक गणतंत्र घोषित करता है और अपने नागरिकों के लिए समानता, स्वतंत्रता और न्याय की प्रत्याभूति देता है। संविधान की नियमावली पर गूढ़ नजर डालें तो पाएंगे कि हमारे संविधान का आधार भगवान श्रीराम के आदर्शों का भी पालन करता है। उनके आदर्श समाज के प्रारूप को ही नहीं अपितु देश के संविधान को तय करने और देश का बेहतर संचालन करने में भी प्रासंगिक हैं। ऐसा ही कुछ विचार आया होगा भारतीय संविधान की मूल हस्तलिखित पांडुलिपि पर चित्र बनाने वाले महान चित्रकार नंदलाल बोस के दिमाग में। ‘सर्वधर्म समभाव’ की विचारमाला को अपने मानकों में पिरोने वाले भारतीय संविधान की रिक्तता को पूर्ण करने के लिए उन्होंने ऐसे चित्र बनाए, जो भारत की गौरवगाथा के अहम अध्याय हैं। 

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