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महाराष्ट्र में भाजपा की ‘महायुती’ की महाविजय, कांग्रेस गठबंधन की करारी हार

नई दिल्ली:लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेलने के बाद महायुति ने विधानसभा चुनाव में दमदार वापसी की है. महायुति ने 288 विधानसभाओं में 230 पर कब्जा कर लिया है. वहीं, महाविकास अघाड़ी महज 46 सीटों पर ही सिमट गई. महायुति सरकार की लड़की बहिन योजना एक बड़ा गेमचेंजर साबित हुई. वहीं ओबीसी और हिंदुत्व समर्थक वोट के एकीकरण ने महायुति की ताकत बढ़ाने का काम किया.बीजेपी ने 132 सीटें जीतकर महाराष्ट्र में अपनी अब तक सबसे बड़ी जीत हासिल की है तो वहीं कांग्रेस का महाराष्ट्र में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. 2014 में मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस यहां 42 सीटें जीतने में कामयाब रही थी लेकिन इस बार कांग्रेस यहां सिर्फ 16 सीटें जीत पाई है. वहीं दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी को इस जीत ने पार्टी का असली उत्तराधिकारी भी बना दिया है. जहां शिवसेना शिंदे ने 57 सीटों पर जीत दर्ज की है वहीं शिवसेना उद्धव ठाकरे महज 20 सीटें ही हासिल कर पाई है.इसी तरह एनसीपी अजित पवार ने 41 सीटों पर कब्जा किया है तो वहीं एनसीपी शरद पवार की पार्टी 10 सीटों पर ही सिमट गई. उद्धव ठाकरे जिनको उनके पिता बाल ठाकरे ने पार्टी का प्रमुख बनाया था, उन्होंने अपना जनाधार खो दिया है. वो राजनीतिक विस्मृति की ओर आगे बढ़ रही है. वहीं 84 वर्षीय शरद पवार के लिए अस्तित्वगत संकट खड़ा हो गया है. 

महायुति की जीत में लड़की बहिन योजना ने अहम भूमिका निभाई, महायुति ने सरकार बनने पर इसे 2100 रुपये करने का वादा किया. 52 लाख परिवारों के लिए 3 मुफ्त गैस सिलेंडर, 8 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों की लड़कियों के लिए मुफ्त उच्च शिक्षा की भी घोषणा की. इन योजनाओं ने महिला मतदाताओं को उत्साहित किया. मराठा आंदोलन से ओबीसी ध्रुवीकरण होने की उम्मीद थी इसलिए बीजेपी ने ओबीसी की 7 जातियों व उप जातियों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने के लिए आयोग बनाने का प्रस्ताव दिया. ‘बटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारों के माध्यम से हिंदुत्व के एकीकरण ने हिंदू समुदाय के भीतर इस चिंता को जन्म दिया कि मुस्लिम वोट एमवीए के पीछे एकजुट हो गया है. इसी वजह से महायुति में शामिल बीजेपी ने 149 सीटों में से 132 सीटों पर जीत दर्ज की. उन्होंने प्रदेश की छह प्रमुख पार्टियों के बीच सबसे अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा. विदर्भ और मराठवाड़ा की सीटें जहां कपास और सोयाबीन की फसल की कम कीमतों पर किसानों का गुस्सा सरकार के खिलाफ जाने की उम्मीद थी वहां भी महायुति की जीत हुई. क्योंकि एमवीए इस मुद्दे को अच्छे से नहीं उठा पाया. दूसरी तरफ महायुति ने किसानों को सरकार आने पर 20 प्रतिशत एमएसपी और 7.5 एचपी तक के कृषि पंप वाले किसानों के लिए मुफ्त बिजली योजना की घोषणा की. मराठा आंदोलन के जवाब में ओबीसी के एकीकरण से बीजेपी को मदद मिली.पश्चिमी महाराष्ट्र में जहां एनसीपी शरद पवार और एनसीपी अजित पवार की पार्टी के बीच कड़ी टक्कर की उम्मीद थी वहां भी अजित पवार की पार्टी हावी रही है. जिसकी मुख्य वजह अपने क्षेत्रों में प्रभाव रखने वाले कई नेता अजित पवार के साथ आ गए थे. सहकारी चीनी कारखानों, बैंकों और डेयरियों के ग्रामीण नेटवर्क पर उनके नियंत्रण ने उन्हें आगे बढ़ने में मदद की.

BJP और कांग्रेस का कैसे रहा प्रदर्शन?
महाराष्ट्र में BJP ने 149 सीटों पर चुनाव लड़ा. इसमें से उसने 133 सीटें जीती. BJP का स्ट्राइक रेट 90% रहा. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा वोट शेयर BJP का रहा. इस चुनाव में BJP को कुल 24.88% वोट मिले. कांग्रेस का वोट शेयर 10.53% है. शरद पवार गुट का वोट शेयर कांग्रेस से ज्यादा है. शिवसेना (UBT) का वोट शेयर 10.60%, NCP (शरद पवार गुट) 11.54%, शिवसेना (शिंदे गुट) का 12.62%, NCP अजित पवार गुट का 11.14% वोट शेयर है. अन्य छोटी पार्टियों और निर्दलीयों को मिलाकर वोट शेयर 18.69% रहा है.कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 19% है. स्ट्राइक रेट के मामले में शिवसेना शिंदे गुट और NCP अजित पवार गुट कांग्रेस से कहीं आगे है. शिवसेना (शिंदे गुट) का स्ट्राइक रेट 66% और NCP (अजित पवार गुट) का स्ट्राइक रेट 67% है. शिवसेना (UBT) का स्ट्राइक रेट 20% और NCP(शरद पवार गुट) का स्ट्राइक रेट 12% है.

महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव राज्य और देश की राजनीति के लिए कई संदेश देने वाला है. इस चुनाव ने बीजेपी के वर्चस्व को साबित कर दिया. यह चुनाव दो-तीन प्रमुख दलों का चुनाव नहीं था बल्कि पार्टियों के दो गठबंधनों के बीच मुकाबला था. इस चुनाव के नतीजे आने के बाद इन दोनों गठबंधनों के कुल 6 नेताओं के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं. एक तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA), यानी महाराष्ट्र में महायुती गठबंधन के नेता एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार हैं तो दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी (MVA) के  शरद पवार, उद्धव ठाकरे और नाना पटोले हैं. महाराष्ट्र में पिछले दो साल यहां की राजनीति में अब तक के सबसे अधिक परिवर्तन लाने वाले साल थे. महाराष्ट्र में जहां यहां के दो स्थापित राजनीतिक दल दो-दो हिस्सों में बंट गए वहीं राज्य में लंबे समय तक खासा प्रभाव रखने वाली पार्टी कांग्रेस हाशिये पर चली गई.      

 

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