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कल्पना सोरेन झारखंड की राजनीति का नया चेहरा

– मनोज वर्मा

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने बहुत ही कम समय में झारखंड की राजनीति में अपने आपको स्थापित किया है हेमंत सोरेन के सीएम बनने के बाद भी कल्पना सोरेन ने राजनीति से अपने आपको अलग रखा था जब जेल जाने के कारण हेमंत सोरेन को पद छोड़ना पड़ा उस समय भी कल्पना सोरेन की राजनीति में डायरेक्ट एंट्री नहीं हुई थी हालांकि बाद में गांडेय विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के माध्यम से उन्होंने राजनीति में एंट्री मारी। महज पिछले 4.5 महीने में ही कल्पना सोरेन ने अपने आपको पूरी तरह से राजनीति में स्थापित कर लिया है। सोशल मीडिया पर उनके हजारों की संख्या में फॉलोअर्स हैं। महिला वोटर्स के बीच भी उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। मंइयां सम्मान योजना के पीछे भी कल्पना सोरेन की रणनीति ही बतायी जा रही है। इस विधानसभा चुनाव में पूरे देश की नजर कल्पना सोरेन पर होगी। कई विधानसभा सीटों पर अभी से ही उनकी सभा के लिए प्रत्याशियों की तरफ से तैयारी की जा रही है। कल्पना सोरेन की भाषण शैली ने लोगों को प्रभावित किया है। वे सादगी के साथ जनता से सीधा स्पष्ट संवाद करती है। कार्यकर्ताओं को संबोधित करने की उनकी तेजतर्रार शैली और पार्टी के कार्यक्रमों में उनके भाषणों ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया है। मार्च 1985 में जन्मी कल्पना ओडिशा से एमबीए की डिग्री के साथ इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं।  मनी लॉन्ड्रिंग के कथित मामले में ईडी द्वारा अपने पति हेमंत सोरेन की जनवरी 2024 में गिरफ्तारी के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा। उन्होंने अपने पति और झारखंड के तत्कालीन सीएम की विरासत संभाली।

कुछ ही महीने पहले सक्रिय राजनीति में एंट्री करने वाली कल्पना ने खुद को काफी परिपक्व और अनुभवी नेता के रूप में जनता के सामने पेश किया है। वह झामुमो के लिए स्टार प्रचारक बनकर उभरी है साथ ही इंडिया ब्लॉक में भी उनकी मांग बढ़ गई है स्थानीय भाषा के अलावा हिंदी और अंग्रेजी पर भी उनका समान अधिकार है। कल्पना सोरेन का झामुमो कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ बहुत अच्छा कनेक्ट हैण् वह जिस सकारात्मक भाव.भंगिमा के साथ खुद को व्यक्त करती हैं उससे बड़ी भीड़ उनकी ओर खींचती है। लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में अपने पहले राजनीतिक भाषण में उन्होंने एक परिपक्व नेता के गुणों का प्रदर्शन किया था। उन्हें लोकसभा चुनावों के दौरान इंडिया ब्लॉक की ओर से झारखंड में प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी गईं कल्पना सोरेन ने आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी 5 लोकसभा सीटों पर प्रचार किया और इंडिया ब्लॉक को उन सभी सीटों पर जीत मिली। गिरिडीह के गांडेय में उपचुनाव में सफलता हासिल करने के बाद धीरे.धीरे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता गया उन्होंने 26000 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने झारखंड के सभी 5 संभागों में बड़े पैमाने पर यात्रा की है। चाहे बीजेपी का गढ़ हो या कोल्हान टाइगर के नाम से मशहूर चंपाई सोरेन का इलाका। मईया सम्मान योजना के लिए आयोजित 70 सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान कल्पना सोरेन ने बड़ी भीड़ खींची। झामुमो और इंडिया ब्लॉक के लिए झारखंड में गेम चेंजर साबित हो सकती हैं क्योंकि महिलाओं के साथ उनका कनेक्ट बहुत शानदार है। इस विधानसभा चुनाव में महिलाएं निर्णायक होने जा रही हैं।हेमंत सरकार ने मंईयां सम्मान योजना के तहत 45 से 50 लाख से अधिक महिलाओं को लाभान्वित करने का लक्ष्य रखा है। जिसके तहत उन्हें पहले ही 1000 रुपये की दो सहायता राशि वितरित की जा चुकी है। कल्पना और हेमंत सोरेन की नजर इस बात पर है कि अगर मंईयां सम्मान योजना के लाभार्थियों का आधा वोट भी झामुमो के पक्ष में आ गया तो पार्टी काफी मजबूत स्थिति में होगी। इसके अलावा अगर कल्पना सोरेन का महिलाओं के साथ जुड़ाव वोटों में तब्दील होता है तो झामुमो जीत हासिल करने की स्थिति में होगी।बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं को कल्पना के साथ जुड़ता देख झामुमो भी हैरान है। जाहिर तौर पर यही कारण है कि झामुमो नेताओं के बीच कल्पना सोरेन की रैलियों की मांग को लेकर होड़ मची हुई है।

जयराम महतो ने पुराने मुद्दों को दी नई धार
जेएलकेएम के नेता जयराम महतो इस विधानसभा चुनाव में लगभग 1 दर्जन सीटों पर प्रभावी साबित हो सकते हैं जयराम महतो ने झारखंड में स्थानीयता और भाषा जैसे मुद्दों के दम पर पिछले 2- 3 सालों में छोटानागपुर और कोल्हान के कुछ क्षेत्रों में अपनी पकड़ बनायी है हाल ही में उन्होंने अपनी पार्टी का भी गठन किया है लोकसभा चुनाव में भी गिरिडीह सीट पर उन्होंने 3 लाख से अधिक वोट लाकर लोगों को चौका दिया था कई अन्य सीटों पर भी उनके उम्मीदवारों ने अच्छा प्रदर्शन किया था हालांकि हाल के दिनों में उनकी पार्टी में हुई टूट के कारण उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है युवाओं के बीच उनकी अच्छी पकड़ है झारखंड की राजनीति में जयराम महतो की पार्टी को आजसू पार्टी के लिए खतरे के तौर पर देखा जा रहा है।

विरासत संभालने आगे आए हैं चंद्रदेव महतो
झारखंड अलग राज्य आंदोलन को 60ए70 और 80 की दशक में ए के रॉय ने नई दिशा दी थी उनके प्रयासों से ही स्थापित झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बढ़ चढ़कर झारखंड आंदोलन में हिस्सा लिया एक दौर में शिबू सोरेन बिनोद बिहारी महतो और एके रॉय की तिकड़ी की चर्चा देश भर में होती थी एके रॉय शिबू सोरेन के कट्टर प्रशंसक थे और वो झारखंड की कमान आदिवासियों के हाथ में जाए इसके सबसे बड़े पैरवीकार रहे थे एके रॉय के निधन के बाद उनकी पार्टी का हाल ही में भाकपा माले में विलय हो गया एके रॉय की पार्टी के नेता रहे चंद्रदेव महतो एके रॉय की परंपरागत सीट सिंदरी से इस चुनाव में भाकपा माले की टिकट पर उतरने वाले हैं। चंद्रदेव महतो बेहद ही ईमानदार और एके रॉय की ही तरह फक्कड़ स्वभाव के माने जाते हैं चंद्रदेव महतो ने बतौर शिक्षक रहते हुए भी सिंदरी में जमकर काम किया और उन्होंने शिक्षक की नौकरी छोड़कर राजनीति में एंट्री ली है वो उन तमाम पुराने मुद्दों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं जिन्हें एक दौर में बिनोद बिहारी महतो शिबू सोरेन और एके रॉय उठाते रहे थे। झारखंड की राजनीति में सिंदरी सीट इस चुनाव में चंद्रदेव महतो के द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों के कारण तेजी से चर्चित हो रहा है राजनीति के जानकारों का मानना है कि भाकपा माले के इंडिया गठबंधन में शामिल होने के बाद उत्तरी छोटानागपुर के क्षेत्र में चुनाव परिणाम पर भी इसका असर पड़ सकता है।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज वर्मा गत तीन दशकों से राजनीति, संसदीय विषयों और जन सरोकार से संबंधित मुददों पर लेखन का कार्य कर रहे हैं।

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