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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा मंजूर,संसद भी नहीं पहुंचे,विदाई भी नहीं 

नई दिल्ली: .सोमवार की देर शाम को जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारण का हवाला देते हुए अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे की घोषणा तो की थी, लेकिन तात्कालिक कारण राज्यसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की नोटिस नजर आ रहा है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूर कर लिया। राज्यसभा में पीठासीन घनश्याम तिवाड़ी ने यह जानकारी दी। दूसरी तरफ, राज्यसभा के उपसभापति और JDU सांसद हरिवंश ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की।हरिवंश ने ही आज सुबह 11 बजे जगदीप धनखड़ की जगह, राज्यसभा की कार्यवाही शुरू की थी। धनखड़ आज सदन की कार्यवाही में भी शामिल नहीं हुए थे। इससे पहले खबर आई थी कि धनखड़ विदाई समारोह में भी शामिल नहीं होंगे। PM नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं धनखड़ के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं।मिली जानकारी के अनुसार सरकार को राज्य सभा में जस्टिस वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव की कोई जानकारी नहीं थी. दरअसल सोमवार को जब सभापति जगदीप धनखड़ ने सदन में घोषणा की कि उन्हें जस्टिस वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव मिला है तो सरकार हैरान रह गई. धनखड़ ने इसके बारे में सरकार को जानकारी नहीं दी थी. सरकार के आला सूत्रों के अनुसार, अगर सरकार को जानकारी दी गई होती तो सत्ता पक्ष के सांसद भी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करते. यहीं सरकार के लिए बड़ी विचित्र स्थिति पैदा हो गई.जगदीप धनखड़ ने चेयर से ऐलान कर दिया और तकनीकी तौर पर जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव राज्य सभा में आ गया, जबकि सरकार ने लोकसभा में इसे रखने की रणनीति बनाई थी और इसके लिए विपक्ष को भी भरोसे में लिया गया था. लोकसभा में लाए गए प्रस्ताव पर विपक्षी सांसदों के भी हस्ताक्षर लिए गए थे.

इसके बाद पीएम मोदी के साथ वरिष्ठ मंत्रियों की बैठक हुई. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के कमरे में वरिष्ठ मंत्री बैठे, फिर चीफ व्हिप के ज़रिए सभी राज्य सभा सांसदों को बुलाया गया. उन्हें कहा गया कि वे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के कमरे में पहुंचें. दस-दस सांसदों का ग्रुप बनाया गया. सभी ग्रुप राजनाथ सिंह के कमरे में गया. वहां एक प्रस्ताव तैयार था, जिस पर हस्ताक्षर करने को कहा गया.इसके बाद जगदीप धनखड़ से बातचीत की गई. फिर धनखड़ ने इस्तीफ़ा देने का फैसला किया. रात को वरिष्ठ मंत्रियों ने अलग-अलग ग्रुप में सांसदों को बुलाया. उन्हें बताया गया कि किस-किस मौके पर धनखड़ ने सीमा लांघी है. उन तमाम घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया, जब धनखड़ सरकार को आड़े हाथों ले चुके हैं या सरकार को उनके कारण शर्मिंदगी उठानी पड़ी है. हालांकि तब तक धनखड़ अपने इस्तीफ़े का ऐलान कर चुके थे.उपराष्ट्रपति का त्यागपत्र राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लिया है. गृह मंत्रालय को इसकी सूचना दे दी गई है. वहीं गजट में प्रकाशन के बाद चुनाव आयोग को सूचना दी जाएगी. फिर चुनाव आयोग पर निर्भर करेगा कि वह चुनाव कब कराए. जस्टिस वर्मा के खिलाफ जांच समिति के बारे में अब स्पीकर और राज्य सभा के उपसभापति मिल कर फ़ैसला करेंगे.

बतौर सभापति धनखड़ ने उस प्रस्ताव को स्वीकार किया था जिसमें विपक्ष के 63 सदस्यों के हस्ताक्षर थे। सरकार के फ्लोर लीडर्स को इसकी जानकारी नहीं थी। इतना ही नहीं धनखड़ की कोशिश की थी कि महाभियोग का यह मामला पहले राज्यसभा में ही चले जो स्पष्ट तौर पर विपक्ष के खाते में जाता क्योंकि उनका प्रस्ताव ही स्वीकार किया गया था।इसके बाद कुछ घटनाएं ऐसी घटीं जिससे धनखड़ शायद क्षुब्ध थे और उन्होंने इस्तीफे का फैसला ले लिया। और शाम छह बजे तक सरकार को अपने इस फैसले से अवगत भी करा दिया था तथा रात 9.25 पर इसे सार्वजनिक भी कर दिया। मंगलवार को भी दिनभर धनखड़ के इस्तीफे को लेकर अटकलें चलती रहीं। लेकिन यह बात लगभग तय हो चुका है कि एक कारण जस्टिस वर्मा ही थे।सरकार की ओर से पहले ही घोषणा की जा चुकी थी कि भ्रष्टाचार के आरोपी जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी है। सरकार की योजना थी कि इसे पहले लोकसभा से पारित किया जाए फिर राज्यसभा जाए।लोकसभा में महाभियोग के नोटिस में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और भाजपा के रविशंकर प्रसाद व अनुराग ठाकुर के साथ-साथ सत्तापक्ष और विपक्ष के 145 सांसदों के हस्ताक्षर से साफ है कि सरकार इस मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने में काफी हद तक सफल रही है। लेकिन राज्यसभा में लगभग 3.30 बजे धनखड़ ने 63 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ महाभियोग का नोटिस मिलने और इसकी प्रक्रिया शुरू करने का एलान कर दिया।इन सांसदों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों का एक भी सांसद नहीं है। यह कमी भाजपा के फ्लोर मैनेजर की रही होगी लेकिन यह अपेक्षा थी कि सरकार की इसकी जानकारी धनखड़ के आफिस से मिलेगी क्योंकि नेता सदन भाजपा के हैं।

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