नई दिल्ली : किसान आंदोलन को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सीधे केंद्र सरकार से सवाल उठाए हैं। उन्होंने मंगलवार को कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से सीधा सवाल पूछा कि आखिर किसानों से जो लिखित में वादे किए गए गए थे, उनका क्या हुआ। उन्होंने लंबा भाषण दिया है, जिसके कई अंश सोशल मीडिया पर भी शेयर किए हैं। वाइस प्रेसिडेंट ने कहा, ‘कृषि मंत्री जी, एक-एक पल आपका भारी है। मेरा आप से आग्रह है कि कृपया करके मुझे बताइये, क्या किसान से वादा किया गया था? किया गया वादा क्यों नहीं निभाया गया? वादा निभाने के लिए हम क्या करें हैं?’
इसके अलावा उन्होंने किसान आंदोलन जारी रहने पर भी सवाल उठाया। उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘गत वर्ष भी आंदोलन था, इस वर्ष भी आंदोलन है। कालचक्र घूम रहा है, हम कुछ कर नहीं रहे हैं। पहली बार मैंने भारत को बदलते हुए देखा है। पहली बार मैं महसूस कर रहा हूँ कि विकसित भारत हमारा सपना नहीं लक्ष्य है। दुनिया में भारत कभी इतनी बुलंदी पर नहीं था। जब ऐसा हो रहा है तो मेरा किसान परेशान और पीड़ित क्यों है? किसान अकेला है जो असहाय है।’ इसके आगे वह कहते हैं कि मान कर चलिए अपने रास्ता भटक गए हैं। हम उस रास्ते पर गए हैं जो खतरनाक है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह आकलन बहुत संकीर्ण है कि किसान आंदोलन का मतलब सिर्फ उतना हैं जो लोग सड़क पर है। ऐसा नहीं है। वह कहते हैं, ‘इस देश के अंदर लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा- “जय जवान, जय किसान’। उस जय किसान के साथ हमारा रवैया वैसा ही होना चाहिए, जो लाल बहादुर शास्त्री की कल्पना थी। और उसके अंदर क्या जोड़ा गया? माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा- “जय जवान, जय किसान, जय अनुसंधान। और वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने दूरदर्शिता दिखाते हुए इसको प्रकाष्ठा पर ले गए – “जय जवान, जय किसान, जय अनुसंधान, जय विज्ञान।’
यही नहीं उन्होंने किसानों के साथ तत्काल वार्ता शुरू करने की वकालत की। उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसान से वार्ता अविलंब होनी चाहिए और हमें जानकारी होने चाहिए, क्या किसान से कोई वादा किया गया था? प्रधानमंत्री जी का दुनिया को संदेश है, जटिल समस्याओं का निराकरण वार्ता से होता है। माननीय कृषि मंत्री जी, आपसे पहले जो कृषि मंत्री जी थे, क्या उन्होंने लिखित में कोई वादा किया था? यदि अगर वादा किया था तो उसका क्या हुआ? मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि किसान से वार्ता क्यों नहीं हो रही है? वाइस प्रेसिडेंट ने कहा कि आखिर किसानों का जो हक है, वह भी हम उसे क्यों नहीं दे रहे हैं। रिवॉर्ड देने की तो बात ही अलग है।
उपराष्ट्रपति की ओर से कृषि मंत्री की खिंचाई और सरकार पर ही सवाल उठाने वाले इस रुख से चर्चाएं भी जोरों पर हैं। आखिर क्यों जगदीप धनखड़ ने इतने तल्ख अंदाज में सरकार पर सवाल उठाए हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमने जो वादा किया था, हम उसको देने में भी कंजूसी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैंने 2 दिन पहले मेरी चिंता व्यक्त की थी कि किसान आंदोलित हैं। मैंने किसान भाइयों से आह्वान किया था की हमे निपटारे की ओर बढ़ना चाहिए।
हम अपनों से नहीं लड़ सकते। हम यह विचारधारा नहीं रख सकते कि उनका पड़ाव सीमित रहेगा, अपने आप थक जाएंगे। अरे भारत की आत्मा को परेशान थोड़ी ना करना है, दिल को चोटिल थोड़ी ना करना है। यदि अगर संस्थाएं जीवंत होती, योगदान करती, यह हालात कभी नहीं आते। उन्होंने आगे बात को संभालते हुए कहा कि यह आप और हमारे सामने प्रश्न हैं। मुझे आशा की किरण नज़र आ रही है। एक अनुभवी व्यक्ति आज के दिन भारत का कृषि मंत्री है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एवं किसान समुदाय से आने वाले सत्यपाल मलिक का साथ मिल गया है। धनखड़ के बयान पर पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने उन्हें बधाई दी है। मलिक ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के उस वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किया है, जिसमें वह कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से सवाल पूछते हुए नजर आ रहे हैं।मलिक ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के उस वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किया है, जिसमें वह कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से सवाल पूछते हुए नजर आ रहे हैं। पूर्व राज्यपाल ने लिखा, किसान की आवाज बुलंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद जगदीप धनखड़। किसान पुत्र ही किसान की पीड़ा समझ सकता है। आप इस स्थिति में हैं कि प्रधानमंत्री से बात करके आप किसानों की समस्याओं का समाधान करवाएंगे। किसान की आवाज बुलंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। इससे पहले भी मलिक, किसानों के मुद्दे पर मुखर रहे हैं। उन्होंने राज्यपाल के पद पर होते हुए किसानों की मांगों का समर्थन किया था। किसानों के आंदोलन को समर्थन देने के बाद मलिक, सरकार के निशाने पर आ गए थे। सरकार ने उनकी सुरक्षा वापस ले ली थी। मलिक का कहना था, भाजपा सरकार किसानों से बातचीत कर उनकी मांगों का समाधान निकाले। प्रजातंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है। केंद्र सरकार ने किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी देने की बात कही थी, लेकिन आज भी किसानों को एमएसपी नहीं मिल रही। सरकार ने किसानों के साथ विश्वासघात किया है।
2020 में शुरु हुआ ‘किसान आंदोलन’ लगभग 378 दिन के बाद खत्म हुआ था। उस वक्त सरकार ने भरोसा दिलाया था कि किसानों की मांगों को पूरा किया जाएगा। इसके लिए एक कमेटी भी गठित की गई। जब कोई बात नहीं बनी तो इस वर्ष के प्रारंभ में किसान आंदोलन 2.0 प्रारंभ हो गया। किसानों की योजना, 6 दिसंबर को दिल्ली कूच करने की है, हालांकि अभी तक उन्हें मंजूरी नहीं मिली है। इस बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक ऐसा बयान दे दिया, जिससे सत्ता पक्ष और विपक्ष में खलबली मच गई। संवैधानिक पद पर बैठे धनखड़ ने जो कुछ कहा, उसे केंद्र सरकार के लिए ‘आईना दिखाना’ बताया जा रहा है। हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने धनखड़ की दहाड़ को एक रणनीति की हिस्सा करार दिया है। उन्होंने यह आशंका जताई है कि केंद्र सरकार ने किसानों को लेकर अपनी इमेज साफ करने के लिए कहीं जानबूझ कर तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के हाथों आईना नहीं देख रही। साल 2020-21 में हुए किसान आंदोलन से केंद्र सरकार हिल गई थी। दिल्ली के बॉर्डर पर 378 दिनों तक चले आंदोलन में 700 से ज्यादा किसान मारे गए थे। केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लेने और किसानों की मांग को पूरा करने के आश्वासन के बाद आंदोलन खत्म हो गया था। किसानों की सबसे बड़ी मांग थी कि एमएसपी व्यवस्था को कानूनी ढांचा प्रदान किया जाए। जब यह मांग पूरी नहीं हुई तो किसानों ने आंदोलन 2.0 प्रारंभ कर दिया। इस बार संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) ने आंदोलन शुरु किया था। ‘दिल्ली चलो मार्च’ का एलान कर दिया गया, लेकिन पुलिस ने किसानों को हरियाणा और पंजाब के शंभू बॉर्डर पर रोक दिया। वहां पर जब पुलिस और किसानों के बीच झड़प हुई तो खनौरी बॉर्डर पर भी किसान आंदोलन शुरु कर दिया गया।
ये आंदोलन को कमजोर करने का पैंतरा हो सकता है…….
एसकेएम के वरिष्ठ सदस्य और ऑल इण्डिया किसान खेत मजदूर संगठन (एआईकेकेएमएस) के अध्यक्ष सत्यवान कहते हैं, उपराष्ट्रपति के बयान के कई मायने निकल रहे हैं। इस बयान की कड़ियां कहीं न कहीं से तो जुड़ रही हैं। खनौरी बार्डर पर पंजाब के किसान नेता एवं भाकियू सिद्धूरपुर के प्रांतीय प्रधान जगजीत सिंह डल्लेवाल आमरण अनशन कर रहे हैं। वे दिल्ली कूच की तैयारी में हैं। जगजीत सिंह, जिस समूह के साथ हैं, उसी से मध्यप्रदेश के किसान नेता शिव कुमार काका भी हैं। ‘कक्का’ अब एसकेएम के साथ नहीं हैं। उन्होंने अपना राष्ट्रीय किसान महासंघ बना लिया है। इसके अलावा उन्होंने एसकेएम ‘नान पोलिटिक्ल’ किसान संगठन भी बनाया है। कुछ राज्यों में इनके सहयोगी संगठन हैं। ऐसा सुनने में आया है कि किसी वक्त में शिव कुमार कक्का, आरएसएस के बहुत करीब रहे हैं। पूर्व सीएम शिवराज चौहान के साथ विधानसभा में सीट बंटवारे को लेकर उनके तल्लखी वाले संबंध, लोग भूले नहीं हैं। कक्का, 2022 में एसकेएम से अलग हो गए थे। सरकार के साथ उनकी नजदीकियां रही हैं।
एसकेएम के एक अन्य किसान नेता बताते हैं, शंभू बॉर्डर पर बैठे किसानों से बातचीत के लिए केंद्रीय मंत्री, तुरंत और कई बार चंडीगढ़ पहुंच गए। कक्का से बात होती है। एसकेएम के नेताओं से केंद्रीय मंत्रियों ने बात नहीं की। अब यह संभव है कि केंद्र सरकार ने उपराष्ट्रपति से सख्त लहजे में बयान दिलाकर किसानों को दोबारा से गुमराह करने की कोई रणनीति बनाई हो।
सत्यवान कहते हैं, सरकार पीछे हट रही है, ऐसा नहीं लगता। ये आंदोलन को कमजोर करने का पैंतरा हो सकता है। राष्ट्रपति ने ऐसा बयान क्यों नहीं दिया। उपराष्ट्रपति को ही आगे क्यों किया गया। क्या वे किसान परिवार से आते हैं, इसलिए। यह सब भाजपा का प्लान है। उसे किसान आंदोलन को खत्म कराना है। सरकार का प्रयास है कि किसान बिखर जाएं। दूसरा, भाजपा किसानों के पक्ष में कोई छोटी मोटी घोषणा कर अपनी किसान विरोधी इमेज को साफ कर सकती है। संभव है कि किसान आंदोलन पर राज्यसभा में भी हंगामा हो, इससे पहले उपराष्ट्रपति ने दांव चल दिया हो। जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ‘एआईकेएससीसी’ के वरिष्ठ सदस्य रहे अविक साहा कहते हैं, उपराष्ट्रपति का बयान, मन बहलाने का एक तरीका हो सकता है। सरकार जानबूझकर उपराष्ट्रपति धनखड़ को आगे कर रही है। जिस सरकार में पीएमओ से पूछे बिना कोई काम नहीं होता, वहां पर उपराष्ट्रपति किसान मुद्दे पर सरकार को आईना दिखा दे, ये संभव नहीं है। सरकार इस मुद्दे पर अपनी साख बचाने के लिए उपराष्ट्रपति का सहारा ले रही है। सदन और मीडिया में किसानों के मुद्दे पर अपनी छवि को खराब होने से बचाने के लिए सरकार यह सब कर रही है। किसान की बैलेंस सीट पर सरकार कोई बात नहीं करती। दूसरी तरफ, अब सरकार को कुछ समझ आ रहा है कि किसान के बिना उनकी स्थायी जीत संभव नहीं है। सरकार, एक आंदोलन को खत्म करेगी तो दूसरा प्रारंभ हो जाएगा। ऐसे में उपराष्ट्रपति का बयान, सरकारी रणनीति के हिस्से से ज्यादा कुछ नहीं है। सरकार, चाहती है कि हम अगर किसानों के लिए थोड़ी बहुत कुछ करें तो उसका क्रेडिट किसान नेता न लें, बल्कि वह भाजपा के खाते में दर्ज हो।