citizenexpress.in

उत्तरांखड में क्यो हो रही हैं बादल फटने की घटनाएं….

नई दिल्ली। पांच अगस्त, 2025 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का एक गांव धराली अचानक आई बाढ़ व मलवे से तबाह हो गया, इसके पीछे “बादल फटने” की घटना को जिम्मेवार माना जा रहा है। जिसके कारण जान-माल के नुकसान की खबर है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने पांच अगस्त, 2025 को कहा कि था पिछले 24 घंटों में उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में 210 मिमी या उससे अधिक बारिश दर्ज की गई।इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, ऊपरी गंगा बेसिन में अत्यधिक बारिश के कारण बाढ़, अचानक बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं अक्सर आती रहती हैं। इन घटनाओं के कारण जन हानि, आजीविका का नुकसान और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचता है।जटिल पहाड़ी इलाकों में अत्यधिक बारिश की घटनाओं के स्थानिय वितरण और नियंत्रण के बारे में सीमित जानकारी के कारण, सरकारी एजेंसियों को ऐसी घटनाओं के प्रबंधन और तैयारी में भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।जुलाई और अगस्त के मानसून के महीनों के दौरान बादल फटने की घटनाएं होती हैं, जिनमें से लगभग 66.6 फीसदी घटनाएं समुद्र तल से 1000-2000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में होती हैं। इन ऊंचाई वाले इलाकों में खतरा अधिक होता है क्योंकि यह राज्य का सबसे अधिक आबादी वाला क्षेत्र है। बारिश के वितरण के आकलन से पता चलता है कि कम मानसूनी बारिश वाले क्षेत्रों में भीषण बारिश (ईआरई) व बादल फटने (सीबीई) की संख्या अधिक होती है।

भारत में सबसे ज्यादा बादल फटने की घटनाएं हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में होती हैं. ये दोनों ही राज्य हिमालय की तलहटी में स्थित हैं और इनकी भौगोलिक स्थिति इन्हें बादल फटने के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाती है.उत्तराखंड में पिछले 10 वर्षों में बादल फटने की घटनाएं बढ़ गई हैं।इन घटनाओं के पीछे 3 प्रमुख कारण हैं। पहला- टिहरी डैम, दूसरा- मानसून सीजन का सिमटना और तीसरा उत्तराखंड के मैदानी हिस्सों में वनों का अभाव।वाडिया इंस्टिट्यूट के भू भौतिकी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुशील कुमार का कहना है कि एक दशक में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। अब मल्टी क्लाउड बर्स्ट की स्थिति पैदा हो गई है। यानी कई बादल एक साथ, एक ही स्थान पर फटते हैं, जिससे भारी नुकसान हो रहा है।डॉ सुशील के अनुसार, टिहरी बांध बनने के बाद ऐसी घटनाओं में इजाफा हुआ है। टिहरी में भागीरथी नदी पर करीब 260.5 मीटर ऊंचा बांध बना है, जिसका जलाशय लगभग 4 क्यूबिक किमी क्षेत्र में फैला है, यानी 32 लाख एकड़ फीट। इसका ऊपरी जल क्षेत्र करीब 52 वर्ग किमी है।जिस भागीरथी नदी का जलग्रहण क्षेत्र पहले काफी सीमित था, बांध बनने के बाद वह बहुत बढ़ गया है। इतनी बड़ी मात्रा में एक जगह पानी इकट्ठा होने से बादल बनने की प्रक्रिया तेज हो गई है। मानसून सीजन में ये बादल इस पानी को ‘सह’ नहीं पाते और फट जाते हैं। पूरे उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाएं चल रही हैं। नदी के प्राकृतिक बहाव को बाधित करने से प्रकृति असंतुलन में आ गई है। इसीलिए बादल फटने की घटनाओं में तेजी आई है।

उत्तराखंड में बादल फटने के कारण भयावह प्राकृतिक आपदा आई है। पहले धराली गांव और उसके बाद हर्षिल में भारतीय सेना के कैंप पर भी बादल फटा। कई लोगों के लापता होने की भी सूचना है। हालांकि भारतीय सेना राहत और बचाव कार्य में जुटी हुई है। हाल में ही बादल फटने की घटना हिमाचल प्रदेश में भी देखी गई। इस प्राकृतिक आपदा के बीच लोगों के मन में एक ही सवाल आ रहा है कि आखिर क्यों पहाड़ी राज्यों में ही बादल फटने की अधिकतम घटनाएं होती हैं? विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले कुछ सालों में पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाओं में इजाफा हुआ है। उत्तराखंड-हिमाचल में डेढ़ गुना से अधिक बादल फटने की घटनाएं हुई हैं, गौर करने वाली बात है कि यह सभी घटनाएं मॉनसून के दौरान ही हुई हैं। 1952 की वह त्रासदी, जब सतपुली का अस्तित्व खत्म हो गया था।

उत्तराखंड में बादल फटने की पहली बड़ी घटना 1952 में सामने आई थी। जब पौड़ी जिले के दूधातोली क्षेत्र में हुई अतिवृष्टि से नयार नदी में अचानक बाढ़ आ गई थी। इस घटना में सतपुली कस्बे का अस्तित्व पूरी तरह से खत्म हो गया था।1954 में रुद्रप्रयाग जिले के डडुवा गांव में अतिवृष्टि के बाद भूस्खलन से पूरा गांव दब गया था।1975 के बाद से लगभग हर साल इस तरह की घटनाएं होने लगी और अब हर बरसात में 15 से 20 घटनाएं दर्ज की जा रही हैं। 2013 में केदारनाथ त्रासदी भी बादल फटने के कारण ही हुई थी। 20 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई। 10 हजार अब भी लापता हैं। मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून के शोध के अनुसार, कुछ सालों के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि पूरे मानसून सीजन में बारिश तो लगभग समान ही रिकॉर्ड हो रही है, लेकिन रेनी डे (किसी एक स्थान पर एक दिन में 2.5 मिमी या उससे अधिक बारिश दर्ज होने को रेनी डे कहा जाता है) की संख्या में कमी आई है। यानी, जो बारिश पहले 7 दिनों में होती थी, वह अब केवल 3 दिनों में ही हो जा रही है, जिससे हालात बिगड़ रहे हैं। साथ ही, जो मानसून सीजन पहले जून से सितंबर तक फैला होता था, वह अब सिकुड़कर केवल जुलाई-अगस्त तक सिमट गया है।मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, अतिवृष्टि के लिए वनों के असमान वितरण को भी एक बड़ा कारण मानते हैं। उत्तराखंड के 70% से अधिक क्षेत्र में वन हैं, लेकिन मैदानी क्षेत्रों में वन नाममात्र के ही हैं। ऐसे में मानसूनी हवाओं को मैदानों में बरसने के लिए अनुकूल वातावरण नहीं मिल पाता और पर्वतीय क्षेत्रों में घने वनों के ऊपर पहुंचकर मानसूनी बादल अतिवृष्टि के रूप बरस जाते हैं। वे कहते हैं कि आज जरूरत सिर्फ पर्वतीय क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि मैदानी क्षेत्रों में भी तीव्र वनीकरण की आवश्यकता है।

आईएमडी के मौसम जर्नल के मुताबिक, बादल फटने को 30 वर्ग किलोमीटर या उससे कम के सघन इलाकों में होने वाली एक ऐसी घटना के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें प्रति घंटे 100 मिमी या उससे अधिक की दर से बारिश होती है। लेकिन इन घटनाओं में कुछ जटिल प्रक्रियाएं शामिल हो सकती हैं। ये घटनाएं आमतौर पर मानसून के दौरान पहाड़ी इलाकों में होती हैं।तापमान में परिवर्तन होने के कारण जब गर्म हवाएं, ऊपर की ओर उठती हैं तो वह अपने साथ नमी भी लेकर जाती हैं। ऊपर पहुंचने के साथ यह गर्म हवा ठंडी हवा में परिवर्तित हो जाती है। जिससे हवा के साथ नमी पानी की बूंदों में परिवर्तित हो जाता है। यह बूंदें आपस में कई सारी बूंदों से मिलकर जाती हैं। जिससे इनका घनत्व बढ़ जाता है और अचानक से एक निश्चित इलाके में भारी बारिश होती है। सरल भाषा में कहें तो हिमाचल और उत्तराखंड में क्षेत्रीय जलचक्र में तेजी से बदलाव होता है। जिससे गर्म हवाएं, ठंडी हवाओं से मिलती हैं और इनमें मौजूद नमी बड़े आकार के बादल बनकर भारी वर्षा कराते हैं। हाल के वर्षों में मॉनसून के दौरान बादल फटने की अधिकतम घटनाएं सामने आई हैं।पहाड़ी इलाकों जैसे उत्तराखंड और हिमाचल में बादल फटने के लिए मौसम वैज्ञानिकों का तर्क है कि गर्म हवाएं नमी के साथ सीधे पहाड़ी इलाकों की ओर बढ़ती हैं फिर यह वही ऊपर जाने का प्रोसेस शुरू करती हैं। लेकिन यहां पर हवाओं के रुकने का एक सीधा कारण ऊंचे-ऊंचे पहाड़ है। जो कि हवाओं को आगे बढ़ने से रोकते हैं। यहां पर कई सारे बादल एक साथ एकत्र हो जाते हैं। जिससे यह बादल फटने की घटनाएं होती है। हालांकि पिछले कई सालों से उत्तराखंड और हिमाचल बादल फटने की घटनाओं को लेकर काफी संवेदनशील हैं। वैज्ञानिक मानते है यहां पर तेजी से होता जलवायु परिवर्तन भी एक बड़ा कारण है। जो कि अधिक वाहनों के आने, जंगलों की आग और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई का कारण है।

error: Content is protected !!
Scroll to Top