-नन्दिनी जावली
नई दिल्ली। अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद दुनिया के अधिकांश देशों में इस बात का आकलन किया जा रहा है कि इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीतियों में क्या बदलाव होंगे। ट्रम्प के पिछले कार्यकाल को ध्यान में रखकर सभी देश अपनी तरह से विवेचना कर रहे हैं कि अमरीका के साथ उनके संबंधों पर क्या असर पड़ेगा। अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की शानदार जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें फोन पर बधाई दी। दोनों नेताओं ने दुनिया में शांति के लिए मिलकर काम करने की बात कही। राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने जिन प्रमुख वैश्विक नेताओं के साथ सबसे पहले फोन पर बात की उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल थे। ट्रंप ने कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत को एक सच्चा दोस्त मानते हैं। फोन पर हुई इस बातचीत में ट्रंप ने पीएम मोदी की खूब तारीफ की और कहा कि वह भारत को बहुत पसंद करते हैं। दोनों नेताओं ने टेक्नालॉजी रक्षा ऊर्जा और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में भारत अमेरिका संबंधों को मजबूत करने पर भी चर्चा की। डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को एक शानदार देश बताया और पीएम मोदी को एक शानदार व्यक्ति।
पीएम मोदी ने ट्रंप से बातचीत के बाद एक्स पर एक पोस्ट में लिखा मेरे मित्र राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बहुत अच्छी बातचीत हुई उन्हें उनकी शानदार जीत पर बधाई दी। उन्होंने आगे कहा कि टेक्नालॉजी रक्षा ऊर्जा अंतरिक्ष और कई अन्य क्षेत्रों में भारत.अमेरिका संबंधों को और मजबूत करने के लिए एक बार फिर मिलकर काम करने की उम्मीद है। ट्रम्प के पिछले कार्यकाल में भारत अमरीका रिश्तों को लेकर जो कार्य अधूरे रह गये थे। वे अब पूरे होंगे। ट्रम्प की जीत का असर दुनिया भर में देखने को मिल रहा है। इसी का फॉल आउट है कि जर्मनी में सत्तारूढ़ गठबंधन अल्पमत में चला गया है। इसी का फॉल आउट है कि इज़राइल के खिलाफ लामबंद ताकतें अब डिफेंसिव मोड में चली गयी हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की नये सिरे से यूरोपिय नेताओं से अपील कर रहे हैं कि रूस के साथ युद्ध में उनको दी जा रही सैन्य मदद जारी रखी जाये। लंबे समय से चल रहा यूक्रेन रूस युद्ध और इज़राइल फिलीस्तीनी संघर्ष भी अब डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ेगा। दोनों ही संघर्षों में अमरीका का रूख बड़ा बदलाव लायेगा। ट्रम्प कह चुके हैं कि वे युद्ध को समाप्त करवायेंगे। उन्होंने अपनी जीत के बाद हमास को भी चेतावनी दी है कि वो अपनी खैर चाहता है तो बंधकों की रिहाई कर दे वरना उसका खात्मा निश्चित है। ट्रम्प का दौर जो बाईडन के कार्यकाल से बिल्कुल अलग रहने वाला है अब अमरीका ढुलमुल नीति की जगह निर्णायक भूमिका में रहेगा।
भारत की बात करें तो अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट पार्टी की उम्मीदवार और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के भारतीय मूल की होने के बावजूद यहां जनमानस ट्रम्प के ही साथ खड़ा दिखा। भारत से अधिकांश प्रतिक्रियायें डोनाल्ड ट्रम्प को ही राष्ट्रपति के रूप में देखने की आ रही थीं। इसका कारण है कि अपने पिछले कार्यकाल में ट्रम्प और मोदी के बीच बढ़ती दोस्ती को भारतीयों ने बहुत पसंद किया था। ट्रम्प का भारत दौरा और गुजरात में रोड शो मोटेरा स्टेडियम में सभा एक ऐतिहासिक पल था भारत अमरीका रिश्तों में। इसी तरह भारतीय प्रधानमंत्री मोदी का अमरीका में हाउडी मोदी कार्यक्रम और ट्रम्प तथा मोदी का हाथ में हाथ डाले अमरीका में जनता का अभिवादन साथ ही, भारतीय मूल के लोगों के बीच पीएम मोदी की ट्रम्प को जीताने के लिये अपील, यह सब न तो भारतीय भूले हैं और शायद ट्रम्प भी नहीं भूले होंगे। चार साल पहले दोनों नेताओं के बीच देखी गयी गर्मजोशी इस बार रिश्तों को कितना मज़बूती की ओर लेकर जायेगी इसका इंतज़ार सभी भारतीयों को रहेगा। इसके साथ ही ट्रम्प ने अपने चुनाव कार्यक्रमों में पीएम मोदी की कई बार सराहना की। उन्होंने अमरीका में बसे हिन्दू समुदाय की भावनाओं का भी सम्मान किया और भारतीय मूल के लोगों की प्रशंसा भी की। इसके विपरीत कमला हैरिस भारतीय अमरीकियों के बीच अपनी पकड़ नहीं बना पायीं। उन्होंने अपने भारतीय मूल के होने की बात को भी कभी खुलकर स्वीकार नहीं किया और खुद को हमेशा अफ्रीकी अमरीकी की तरह ही प्रस्तुत किया। उनके भाषणों में भारत, पीएम मोदी या अमरीका में बसा हिंदू समुदाय भी नदारद रहा। यही कारण है कि भारत में भी उनकी उम्मीदवारी को लेकर कोई उत्सुकता नहीं देखी गयी। ऐसा नहीं है कि चुनौतियां सामने नहीं आयेंगी परंतु जैसा भारतीय विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने कहा है कि भारत डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी को एक मौके के रूप में देखता है। इससे भारत.अमरिका संबंधों को खूब मजबूती मिलेगी और दोनों देशों को लाभ भी होगा खासकर व्यापारिक मामले में।
भारत के लिये अमरीकी चुनावों में एक और अच्छी बात रही नयी सरकार में उपराष्ट्रपति बनने जा रहे जेडी वेंस भी भारत को बहुत पसंद करते हैं और इसका एक कारण उनकी भारतीय मूल की पत्नी उषा चिलुकुरी वेंस भी हैं। उषा चिलुकुरी का संबंध आंध्र प्रदेश से है और इस नाते से जेडी वेंस आंध्र प्रदेश के दामाद हुये। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने राज्य की बेटी और दामाद को जीत के लिये बधाई के साथ भारत आने का निमंत्रण भी दिया है। भारत अमरीकी संबंधों में आने वाला समय काफी उम्मीदों संभावनाओं वाला रहेगा आर्थिक क्षेत्र में वीज़ा नियमों को लेकर कुछ बाधायें रूकावटें हो सकती हैं परंतु भारत की एऩडीए सरकार और अमरीका के रिपब्लिकन प्रशासन में तालमेल बेहतर रहने की ही उम्मीद है। हमारे कूटनीतिज्ञों ने तो 2025 में पीएम मोदी और अमरीका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच क्व़ाड शिखर सम्मेलन की भारत द्वारा मेजबानी के दौरान होने वाली पहली बैठक की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं।
मोदी और ट्रंप के युग में भारत अमेरिका संबंध
इंडो पैसिफिक में चीन की भूमिका का मुकाबला करने की इच्छा अमेरिका और भारत के लिए बढ़ती रणनीतिक अभिसरण का क्षेत्र है। दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी पर भारत की बढ़ती चिंता और अमेरिका द्वारा चीन के बढ़ते वैश्विक प्रभाव का मुकाबला करने की कोशिशों के साथ भारत और अमेरिका हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की भूमिका का मुकाबला करने की आवश्यकता पर रणनीतिक अभिसरण के बढ़ते स्तर पर पहुंच गए हैं। यह रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में और विशेष रूप से नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प की सरकारों के तहत सबसे अधिक स्पष्ट है।भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में पिछले 15 वर्षों में काफी सुधार हुआ है। द्विपक्षीय संबंधों में तब महत्वपूर्ण बदलाव आया जब जुलाई 2005 में अमेरिका ने पहली बार भारत के साथ पूर्ण असैन्य परमाणु ऊर्जा सहयोग हासिल करने के लिए काम करने पर सहमति जताई। सितंबर 2008 में भारत को असैन्य परमाणु व्यापार शुरू करने के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह द्वारा छूट दी गई थी और अगले महीने ऐतिहासिक भारत अमेरिका असैन्य परमाणु सहयोग समझौता हुआ जिसने द्विपक्षीय संबंधों को बदल दिया।फरवरी 2020 के अंत में ट्रंप द्वारा भारत की राजकीय यात्रा इस बढ़े हुए द्विपक्षीय संबंधों और इसके भीतर रक्षा सहयोग के महत्व का प्रतीक थी। भारत के सर्वांगीण प्राथमिक सुरक्षा साझेदार के रूप में अमेरिका की पुनः पुष्टि के रूप में कार्य करते हुए इस यात्रा का उद्देश्य दोनों नेताओं के घरेलू राजनीतिक उद्देश्यों को मजबूत करना भी था। इसने मोदी सरकार के लिए एक स्वागत योग्य विकर्षण प्रदान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में हुई संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा से दोनों देशों के बीच तकनीकी सहयोग नई ऊंचाइयों तक पहुंच गया है।
डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में वापस लौटने के साथ ही इस बात पर सवाल उठ रहे हैं कि उनका दूसरा कार्यकाल अमेरिकी विदेश नीति और खास तौर पर भारत.अमेरिका संबंधों को कैसे आकार देगा। ट्रंप की विदेश नीति ने हमेशा अमेरिका फर्स्ट पर जोर दिया है जो यह दर्शाता है कि उनके अगले कार्यकाल में अधिक स्पष्ट अलगाववाद की विशेषता हो सकती है। हालांकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके मधुर संबंध जो पहली बार हाउडी मोदी!ष् और नमस्ते ट्रंप के दौरान प्रदर्शित हुए एक अद्वितीय कूटनीतिक आधार का वादा करते हैं। दोनों नेताओं के बीच यह बंधन दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच संबंधों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। हाल के हफ्तों में ट्रंप बांग्लादेश और अन्य जगहों पर हिंदुओं के साथ हो रहे व्यवहार के बारे में काफी मुखर रहे हैं। ट्रंप और पीएम मोदी के बीच दोस्ती ने भारत .अमेरिका संबंधों में एक मिसाल कायम की है। मोदी ने अपने व्यापार समर्थक रुख और आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करके ट्रंप में एक समान विचारधारा वाला साथी पाया है। दोनों नेता व्यापार नवाचार विनियमन और आर्थिक विकास के उद्देश्य से नीतियों का समर्थन करते हैं। उनके नेतृत्व में भारत और अमेरिका वैश्विक आर्थिक मंच पर महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं। दोनों राष्ट्र समान हितों से प्रेरित है भारत का लक्ष्य दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है जबकि अमेरिका चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए विश्वसनीय सहयोगियों की तलाश कर रहा है।मोदी और ट्रंप में तेजी से जटिल होते वैश्विक परिदृश्य में पारस्परिक आर्थिक विकास सुरक्षा और रणनीतिक हितों के आधार पर द्विपक्षीय संबंधों को फिर से परिभाषित करने की क्षमता है। व्यापार एक नाजुक मुद्दा है खासकर ट्रम्प के पारस्परिक करों पर रुख के साथ। अपने 2016 के राष्ट्रपति पद के दौरान ट्रंप ने अक्सर उन देशों की आलोचना की जिन्होंने अमेरिकी वस्तुओं पर उच्च टैरिफ लगाए और भारत इसका अपवाद नहीं था। पारस्परिकता के बारे में ट्रम्प की बयानबाजी से पता चलता है कि अगर उन्हें व्यापार असंतुलन का एहसास होता है तो वे टैरिफ नीतियों पर फिर से विचार कर सकते हैं। कुछ अमेरिकी वस्तुओं पर भारत के टैरिफ लंबे समय से ट्रम्प के लिए विवाद का विषय रहे हैं जिन्होंने अधिक न्यायसंगत व्यापार प्रथाओं का आह्वान किया है।
भारत के लिए टैरिफ में वृद्धि आईटी फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल जैसे उद्योगों के लिए चुनौती बन सकती है जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं। हालांकि अगर ट्रंप चीन से अलग होने पर जोर देते हैं जो उनकी पिछली आर्थिक रणनीति का हिस्सा है . तो इससे भारत को फायदा हो सकता है जिससे संभावित रूप से उसके विनिर्माण क्षेत्र में अधिक अमेरिकी निवेश आकर्षित हो सकता है। यह अलगाव भारत को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने की चाहत रखने वाली अमेरिकी कंपनियों के लिए एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में खुद को स्थापित करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।हाल के वर्षों में भारत.अमेरिका रक्षा संबंधों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है खास तौर पर इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमेजिंग टेक्नोलॉजी और प्रमुख रक्षा सौदों जैसी पहलों के साथ। बिडेन प्रशासन के तहत जीई एचएएल समझौता जो भारत में जेट इंजन के उत्पादन को सक्षम बनाता है और अन्य प्रमुख सहयोगों ने भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत किया है। ट्रंप का दूसरा कार्यकाल इन गठबंधनों के लिए अधिक लेन.देन वाला दृष्टिकोण ला सकता है जिससे संभावित रूप से रक्षा सौदे भारत की अपनी प्रतिबद्धताओं पर सशर्त हो सकते हैं।
आतंकवाद का मुकाबला करना ट्रम्प और मोदी के लिए साझा हित का क्षेत्र रहा है। ट्रंप के पहले प्रशासन के दौरान उनका शक्ति के माध्यम से शांति सिद्धांत भारत की सुरक्षा प्राथमिकताओं विशेष रूप से पाकिस्तान के संबंध में के साथ अच्छी तरह से संरेखित था। ट्रम्प.मोदी साझेदारी आतंकवादी खतरों का मुकाबला करने और चरमपंथ से निपटने के लिए संयुक्त प्रयासों को मजबूत कर सकती है। मोदी ने लंबे समय से आतंकवाद पर सख्त रुख की वकालत की है और विदेश नीति के प्रति ट्रंप का बेबाक दृष्टिकोण आतंकवादी नेटवर्क से निपटने में समन्वित प्रयासों को जन्म दे सकता है जिससे क्षेत्रीय स्थिरता को लाभ होगा। ट्रंप के नेतृत्व में मजबूत अमेरिकी.भारत आतंकवाद.रोधी साझेदारी आतंकवादी समूहों को पनाह देने वाले देशों पर कूटनीतिक दबाव डाल सकती है जिससे भारत का सुरक्षा वातावरण बेहतर हो सकता है।व्हाइट हाउस में ट्रंप की वापसी और भारत में मोदी का निरंतर नेतृत्व भारत.अमेरिका संबंधों के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों प्रस्तुत करता है। साथ मिलकर वे तेजी से जटिल होते वैश्विक परिदृश्य में आपसी आर्थिक विकास सुरक्षा और रणनीतिक हितों के आधार पर द्विपक्षीय संबंधों को फिर से परिभाषित करने की क्षमता रखते हैं। व्यापार रक्षा और साझा क्षेत्रीय चिंताओं को संबोधित करते हुए मोदी और ट्रंप एक ऐसी साझेदारी बना सकते हैं जो न केवल भारत.अमेरिका संबंधों को मजबूत करेगी बल्कि लोकतंत्रों के बीच गठबंधन के लिए एक नई मिसाल भी स्थापित करेगी। दुनिया इस नए अध्याय की शुरुआत करते हुए देखेगी जिसमें एक ऐसी साझेदारी की बड़ी उम्मीदें हैं जो वैश्विक कूटनीति और आर्थिक सहयोग के भविष्य को आकार दे सकती है।——-
Nandini Jaoli has been working as a journalist for the last twenty five years and has worked in Germany, Britain and New Delhi. She served as News Editor with Radio Deutsche Welle, Germany, as European correspondent for the Pioneer in the UK. In Delhi, she headed the national bureau of ETV Bharat. She has penned a book titled, Post-Cold War World Order released by Observer Research Foundation. Her first work of fiction, A House of Butterflies: Story about a Women’s Hostel, was published recently. She holds a Masterclass Diploma awarded jointly by Britain’s East Anglia University and the UK’s- The Guardian.