भारत में कृषि एक अहम हिस्सा है, खासकर रबी फसलें, जो हमारे खाद्य आपूर्ति का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं. गेहूं, चावल, दालें, तिलहन, फल और सब्जियां रबी फसलों में आती हैं. हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 2024 में इन फसलों पर एक सर्वे किया. इस सर्वे ने यह बताया गया कि किसान अपनी फसलें उगाते हैं तो उनके हिस्से में उपभोक्ता कीमतों का कितना हिस्सा आता है, और किस तरह से व्यापारी और खुदरा विक्रेता ज्यादा मुनाफा कमाते हैं. इस सर्वे के अनुसार, किसानों को रबी फसलों की कीमतों का हिस्सा 40 से 67 प्रतिशत तक मिलता है. हालांकि, यह हिस्सा हर फसल के लिए अलग-अलग होता है. जिन फसलों को लंबे समय तक रखा जा सकता है, जैसे गेहूं, उन फसलों में किसानों का हिस्सा ज्यादा होता है. वहीं, फल और सब्जियां जैसी नाशवां फसलों में किसानों को कम हिस्सा मिलता है. उदाहरण के तौर पर, गेहूं में किसानों को उपभोक्ता कीमतों का 67 प्रतिशत मिलता है, जबकि फल और सब्जियों में यह हिस्सा 40 से 63 प्रतिशत के बीच होता है.सर्वे में यह भी खुलासा हुआ कि गेहूं किसानों को उपभोक्ता कीमतों का 67 प्रतिशत हिस्सा मिलता है. यह आंकड़ा इस बात को दर्शाता है कि गेहूं एक नोटिफाइड आइटम है और इसका एक बड़ा हिस्सा सार्वजनिक खरीद प्रणाली (Minimum Support Price – MSP) के तहत खरीदा जाता है. इस वजह से किसानों को सरकारी खरीद प्रणाली से एक सुरक्षित बाजार मिलता है और वे अच्छे मूल्य पर अपनी फसल बेच पाते हैं.लेकिन, इसके बावजूद, यह 67 प्रतिशत हिस्सा भी पूरी तरह से किसानों के लिए संतोषजनक नहीं है. सर्वे के अनुसार गेहूं की उपभोक्ता कीमतों में 33 प्रतिशत हिस्सा बिचौलियों, व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं के पास जाता है.किसान अपने खून-पसीने से खेतों में फसल उगाते हैं, लेकिन जब वही फसल बाजार में पहुंचती है, तो उन्हें मिलता क्या है? यही सवाल भारतीय किसान हमेशा उठाते रहे हैं. हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने एक सर्वेक्षण में इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की. इस सर्वे में यह सामने आया कि किसानों को रबी फसलों की कीमतों काकेवल 40 से 67 प्रतिशत हिस्सा ही मिल पाता है. वहीं फल और सब्जियों की बात करें तो ये प्रतिशत और भी कम हो जाता है. ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि आखिर वो किसान जो फसल उगाते हैं, उन्हें उनका मेहनताना क्यों नहीं मिल पाता? क्या बाजार की अनऑर्गनाइज्य सप्लाई चेन और बिचौलियों के मुनाफे ने किसानों को हाशिए पर ला दिया है?
आरबीआई का सर्वे
देश के उपभोक्ता जो भी रबी फसलों की उपज खरीदते हैं, उसका 40 से 67 परसेंट पैसा किसानों के पास जाता है. यह जानकारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के एक सर्वे में सामने आई है. इसमें पैसे के भुगतान के बारे में भी बताया गया है. स्टडी कहती है कि उपज से जुड़े लेनदेन यानी ट्रांजैक्शन में नकद का बोलबाला है, मगर ऑनलाइन पेमेंट ने भी बड़ा उछाल दर्ज किया गया है. इस सर्वे में रबी फसलों (खासकर टमाटर, प्याज और आलू) को शामिल किया गया है जो मई-जुलाई 2024 में उगाई और बेची गईं. सर्वे बताता है कि किसानों को उन उपजों का दाम अधिक मिला जो जल्द खराब होने वाली नहीं है, जबकि फल और सब्जियों का शेयर बहुत कम रहा.भारत में कृषि एक अहम हिस्सा है, खासकर रबी फसलें, जो हमारे खाद्य आपूर्ति का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं. गेहूं, चावल, दालें, तिलहन, फल और सब्जियां रबी फसलों में आती हैं. हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 2024 में इन फसलों पर एक सर्वे किया. इस सर्वे ने यह बताया गया कि किसान अपनी फसलें उगाते हैं तो उनके हिस्से में उपभोक्ता कीमतों का कितना हिस्सा आता है, और किस तरह से व्यापारी और खुदरा विक्रेता ज्यादा मुनाफा कमाते हैं. इस सर्वे के अनुसार, किसानों को रबी फसलों की कीमतों का हिस्सा 40 से 67 प्रतिशत तक मिलता है. हालांकि, यह हिस्सा हर फसल के लिए अलग-अलग होता है. जिन फसलों को लंबे समय तक रखा जा सकता है, जैसे गेहूं, उन फसलों में किसानों का हिस्सा ज्यादा होता है. वहीं, फल और सब्जियां जैसी नाशवां फसलों में किसानों को कम हिस्सा मिलता है. उदाहरण के तौर पर, गेहूं में किसानों को उपभोक्ता कीमतों का 67 प्रतिशत मिलता है, जबकि फल और सब्जियों में यह हिस्सा 40 से 63 प्रतिशत के बीच होता है.
चावल का हाल भी जान लीजिये
सर्वे में यह भी पता चला कि चावल किसानों को उपभोक्ता कीमतों का 52 प्रतिशत हिस्सा मिलता है. यह आंकड़ा पिछले सालों के सर्वे के मुकाबले स्थिर रहा है, यानी किसानों को चावल के लिए पिछले समय की तरह ही हिस्सा मिल रहा है. लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि किसानों को उनके काम का पूरा मूल्य मिल रहा है. चावल की बहुत बड़ी आपूर्ति और मांग होने के बावजूद, किसानों को जो मिल रहा है, वह उतना नहीं है. दरअसल, चावल के अधिकतर मुनाफे का हिस्सा बड़े व्यापारी और खुदरा विक्रेता ले जाते हैं, जबकि किसान सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा ही पाते हैं.
क्या फल और सब्जियों का नुकसान किसानों को होता है?
नाशवां फसलें जैसे फल और सब्जियां, जिनका शेल्फ जीवन कम होता है, उनके मामले में किसानों का हिस्सा और भी कम होता है. इन फसलों में किसान 40 से 63 प्रतिशत तक ही उपभोक्ता कीमतों का हिस्सा पाते हैं. सबसे बड़ा कारण यह है कि इन फसलों में व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं का मुनाफा ज्यादा होता है. उनके पास इन्हें उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए ज्यादा मार्जिन होता है, और वे इस पर अधिक पैसा कमाते हैं.फलों और सब्जियों की आपूर्ति श्रृंखला में असंगठित बिचौलिए शामिल होते हैं, जिनकी वजह से किसानों को अपना सामान बेचने में समस्याएं आती हैं. इन असंगठित बिचौलियों के कारण उत्पाद, पैसे और जानकारी का सही तरीके से प्रवाह नहीं हो पाता, जिससे किसानों का हिस्सा घट जाता है. यह भी देखा गया कि मौसम की अनिश्चितताओं और आपूर्ति की बाधाओं के कारण इन फसलों की कीमतें और किसानों का हिस्सा अस्थिर रहते हैं.
पल्स और तिलहन में मिल रहा किसानों को अच्छा हिस्सा
सर्वे के अनुसार दालों में किसानों का हिस्सा अच्छा मिलता है. मटर उत्पादक किसानों को 66 प्रतिशत और चना उत्पादक किसानों को 60 प्रतिशत हिस्सा मिलता है. यह आंकड़े दर्शाते हैं कि दालों के मामले में किसानों को उपभोक्ता कीमतों का एक बड़ा हिस्सा मिलता है. यह विशेष रूप से छोटे किसानों के लिए अहम है, क्योंकि दालें मुख्य रूप से छोटे खेतों पर उगाई जाती हैं और भारत में दालों की आयात पर निर्भरता भी ज्यादा है.
सरकारी समर्थन और MSP प्रणाली
भारत में कई फसलें, जैसे गेहूं और चावल, सरकारी समर्थन प्रणाली के तहत आती हैं. इससे किसानों को एक सुरक्षित बाजार और उचित मूल्य मिलता है. लेकिन, इन फसलों के अलावा दूसरी फसलें, जैसे फल, सब्जियां और दालें, MSP के तहत नहीं आती हैं, और किसानों को इनके लिए बाजार में सही मूल्य नहीं मिल पाता.सरकारी खरीद प्रणाली (MSP) से जुड़ी पॉलिसियां किसानों के लिए अहम हैं, क्योंकि यह उन्हें न्यूनतम मूल्य पर अपनी फसल बेचने का मौका देती हैं. हालांकि, यह नीति केवल कुछ प्रमुख फसलों तक ही सीमित है, और अन्य फसलों में किसानों को उचित मूल्य नहीं मिलता है.
विकास की दिशा में सुधार की जरूरत
भारत में कृषि क्षेत्र में सुधार की जरूरत है. असंगठित आपूर्ति श्रृंखला, उच्च बिचौलियों की संख्या और फसल के बाद की कमी (post-harvest losses) ये सभी किसान के मुनाफे को प्रभावित करते हैं. सरकार को इन समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य मिल सके.इसके लिए सरकार को MSP प्रणाली को और प्रभावी बनाना होगा, साथ ही उन फसलों को भी MSP के तहत लाना होगा, जो आज तक इसके दायरे में नहीं हैं. इसके अलावा असंगठित आपूर्ति श्रृंखला को व्यवस्थित करने की दिशा में काम करना होगा, ताकि बिचौलियों के मुनाफे को कम किया जा सके और किसान को उनका हक मिल सके.भारत के किसान देश की अर्थव्यवस्था की नींव हैं, लेकिन उनका मुनाफा अक्सर दब जाता है. RBI के सर्वेक्षण से यह साफ है कि किसानों का हिस्सा फसलों की कीमतों में बहुत कम होता है, खासकर नाशवां फसलों में. जबकि सरकारी समर्थन प्रणाली कुछ फसलों में किसानों के लिए लाभकारी साबित होती है, अन्य फसलों में उनका हिस्सा घटकर रह जाता है. इस स्थिति को सुधारने के लिए, एक मजबूत और संगठित कृषि आपूर्ति श्रृंखला की आवश्यकता है, ताकि किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिल सके.