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राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष ने पेश किया अविश्वास प्रस्ताव

नई दिल्ली। विपक्ष ने मंगलवार को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। यह भारत के संसदीय इतिहास में इस तरह की पहली कार्रवाई है।विपक्षी इंडिया खेमे ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को पद से हटाने का प्रस्ताव दिया है। मंगलवार को कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बताया कि धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव राज्यसभा के महासचिव को सौंपा जा चुका है विपक्षी गठबंधन ने धनखड़ पर पक्षपाती ढंग से सदन चलाने का आरोप लगाया है रमेश ने कहा कि यह फैसला इंडिया के दलों के लिए दर्द भरा था लेकिन संसदीय लोकतंत्र के हित मेंश् ऐसा करना पड़ा। विपक्ष दल पहले भी धनखड़ के रवैये पर सवाल उठाते आए हैं। सदन के भीतर भी और उसके बाहर भी। ब्लॉक की पार्टियों ने इस साल अगस्त में भी उपराष्ट्रपति के खिलाफ ऐसा प्रस्ताव लाने की सोची थी लेकिन यह पहली बार है जब औपचारिक रूप से उपराष्‍ट्रपति को सभापति के पद से हटाने का प्रस्ताव दिया गया है। विपक्षी दल राज्यसभा में जगदीप धनखड़ के प्रबंधन से क्षुब्ध हैं विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश करते हैं।। इस अविश्वास प्रस्ताव को लेकर विपक्षी नेताओं ने बताया कि इसे प्रस्ताव को लाने के लिए 50 सांसदों के साइन की जरूरत थी। हमने इस अविश्वास प्रस्ताव पर 70 से ज्यादा सांसदों के हस्ताक्षर करवाए हैं। विपक्षी दलों के सभी सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैंए जिसमें आम आदमी पार्टी द्रमुक झारखंड मुक्ति मोर्चा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शरद चंद्र पवार शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे तृणमूल कांग्रेस समाजवादी पार्टी के सांसद शामिल हैं।

भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव

यह भारत के संसदीय इतिहास में इस तरह की पहली कार्रवाई है। संविधान के अनुच्छेद 67 में उपराष्ट्रपति की नियुक्ति और उन्हें पद से हटाने से जुड़े तमाम प्रावधान किए गए हैं। संविधान के अनुच्छेद 67बी में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो उसके जरिये उनके पद से हटाया जा सकता है लेकिन कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा जब तक कम से कम 14 दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो जिसमें यह बताया गया हो ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित कांग्रेस के कई सदस्यों ने सोमवार को सभापति जगदीप धनखड़ पर राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान ष्पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया था।

धनखड़ पर पक्षपातपूर्ण और पक्षपातपूर्ण कार्यप्रणाली का आरोप
जगदीप धनखड़ के खिलाफ प्रस्ताव लाने के पीछे विपक्ष का सबसे बड़ा तर्क है कि वह राज्यसक्षा में पक्षपातपूर्ण रवैया अपना रहे हैं। ऐसे आरोप उनके खिलाफ पिछले कुछ समय लगातार लगते रहे हैं। जॉर्ज सोरोस से जुड़े मुद्दे पर उनकी भूमिका से समूचा विपक्ष बुरी तरह नाराज है। इसने उन्हें फिर एकजुट कर दिया है सोरोस मुद्दे पर राज्यसभा में बुरी तरह हंगामा हुआ। इस साल अगस्त में भी विपक्ष उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी कर चुका था तब उनके खिलाफ आरोप था कि उनके इशारे पर नेता विपक्ष का माइक्रोफोन बार.बार बंद कर दिया जाता है। संसदीय नियम.कायदों का पालन नहीं किया जाताण् विपक्षी सांसदों पर व्यक्ति टिप्पणी की जा रही है। विपक्षी नेताओं का ये भी कहना है कि वो हेडमास्टर की तरह बर्ताव करते हैं मनमाने तरीके से सदन को चलाते हैं उनके संचालन का तरीका पक्षपातपूर्ण लगता है।

धनखड़ के खिलाफ लाए अविश्वास प्रस्ताव पर क्या बोले जयराम रमेश
इस प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट करके जानकारी दी। उन्होंने लिखा. राज्य सभा के माननीय सभापति द्वारा अत्यंत पक्षपातपूर्ण तरीके से उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन करने के कारण इंडिया ग्रुप के सभी घटक दलों के पास उनके खिलाफ औपचारिक रूप से अविश्वास प्रस्ताव लाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।पार्टियों के लिए यह बेहद ही कष्टकारी निर्णय रहा है लेकिन संसदीय लोकतंत्र के हित में यह अभूतपूर्व कदम उठाना पड़ा है।यह प्रस्ताव अभी राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को सौंपा गया है।जयराम रमेश ने कहा कि यह व्यक्तिगत मामला नहीं है। हमने केवल विपक्षी सदस्यों के अपमान के खिलाफ आवाज उठाई है। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि सरकार दोनों सदनों को काम करने नहीं देना चाहती। कल संसदीय मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा के सभापति के सामने यह बात कही थी कि जब तक आप ;विपक्षद्ध लोकसभा में अदाणी मुद्दा उठाते रहेंगेए हम ;सरकारद्ध राज्यसभा को काम नहीं करने देंगे। इस दौरान वहां पर भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा भी मौजूद थे।

संविधान में क्या कहा गया है
संविधान के अनुच्छेद 67बी में कहा गया है उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो के जरिये उसके पद से हटाया जा सकता हैण् लेकिन कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा जब तक कि कम से कम चौदह दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो जिसमें यह बताया गया हो ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है।

उपराष्ट्रपति को हटाने के नियम
1.उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही पेश किया जा सकता है लोकसभा में नहीं

2 -14 दिन का नोटिस देने के बाद ही प्रस्ताव पेश किया जा सकता है

3-प्रस्ताव को राज्य सभा में प्रभावी बहुमत रिक्त सीटों को छोड़कर राज्य सभा के तत्कालीन सदस्यों का बहुमत द्वारा पारित किया जाना चाहिए और लोकसभा द्वारा ष्साधारण बहुमत से सहमत होना चाहिए

4-जब प्रस्ताव विचाराधीन हो तो सभापति सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते

5- राज्यसभा के सभापति के विपरीतए लोकसभा के मतदान कर सकते हैं लेकिन अगर उन्हें हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो और वोटों की समानता के मामले में मतदान का अधिकार नहीं मिलता

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