दिल्ली में BJP ने आखिर वह करिश्मा कर दिखाया, जिसकी कोशिश में वह पिछले 27 सालों से लगी थी. दो दशक से भगवा रथ आकर दिल्ली में थम जाता था. 1998 में दिल्ली का किला जीतने के लिए अपनी सबसे कद्दावर नेता सुषमा स्वराज को कमान सौंपी थी, लेकिन अरमान अधूरे ही रहे. बीजेपी 27 साल से दिल्ली में वनवास पर थी. कांग्रेस के बाद भगवा रथ को दिल्ली में करप्शन के मुद्दे पर प्रचंड बहुमत से सत्ता में आए केजरीवाल ने रोके रखा. बीजेपी लोकसभा चुनाव में दिल्ली जीतती और विधानसभा चुनाव में हार जाती. लेकिन 8 फरवरी 2025 को बीजेपी के लिए सब बदल गया. 2024 में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव जीता. दिल्ली की सभी सात सीटों पर लगातार तीसरी बार कब्जा किया और 11 महीने बाद भी भगवा रंग फीका नहीं होने दिया. दिल्ली में प्रचंड बहुमत से पार्टी जीती. बीजेपी का यह दिल्ली विजय 1993 की उसकी रेकॉर्ड जीत से कई मायने में बढ़कर है. 1993 में बीजेपी ने 42.8 पर्सेंट वोट शेयर के साथ 49 सीटों पर कब्जा किया था. दिल्ली में बीजेपी में उसकी सीटें इस रेकॉर्ड जीत से कुछ कम जरूर हैं, लेकिन उसका वोट शेयर 46.29 पर्सेंट (दोपहर 2 बजे तक ) तक पहुंचा है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार यह जनाधार हासिल किया है. दिल्ली के वोटर्स ने आम आदमी पार्टी (AAP) को सत्ता से बाहर कर दिया है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 70 में से 48 सीटों पर जीत दर्ज की, यानी दिल्ली की लगभग दो-तिहाई सीटें जीत लीं. वह पिछले 27 साल से दिल्ली की सत्ता से बाहर थी. वहीं, AAP सिर्फ 22 सीटों पर जीत हासिल कर पाई. 2015 से दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही AAP के बड़े चेहरे भी चुनाव हार गए.

केजरीवाल नई दिल्ली सीट से हार गए और मनीष सिसोदिया, सत्येन्द्र जैन और सौरभ भारद्वाज जैसे अन्य पार्टी नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा. मुफ्त बिजली, पानी और शिक्षा सुधारों पर केंद्रित पार्टी का शासन मॉडल शहर के निवासियों के साथ तालमेल बिठाने में स्पष्ट रूप से विफल रहा. केजरीवाल द्वारा मंदिर के पुजारियों को मासिक भत्ता देने का वादा करने के साथ उनका नरम हिंदुत्व भी मतदाताओं को रास नहीं आया.भाजपा+ को AAP से 3.6% ज्यादा वोट मिले। इससे 26 सीटें ज्यादा मिलीं। पिछली चुनाव में 8 सीटें थीं। कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली।भाजपा ने 1993 में 49 सीटें यानी दो तिहाई बहुमत हासिल किया था। 5 साल की सरकार में मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज सीएम बनाए गए थे। 1998 के बाद कांग्रेस ने 15 साल राज किया। इसके बाद 2013 से आम आदमी पार्टी की सरकार थी।इस बार भाजपा की 71% स्ट्राइक रेट के साथ 40 सीटें बढ़ीं। पार्टी ने 68 पर चुनाव लड़ा, 48 सीटें जीतीं। वहीं, AAP को 40 सीटों का नुकसान हुआ। आप का स्ट्राइक रेट 31% रहा। भाजपा ने पिछले चुनाव (2020) के मुकाबले वोट शेयर में 9% से ज्यादा का इजाफा किया। वहीं, AAP को करीब 10% का नुकसान हुआ है। कांग्रेस को भले ही एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन वोट शेयर 2% बढ़ाने में कामयाब रही।
दिल्ली रिजल्ट के इंटरेस्टिंग फैक्ट्स
- 2020 में भाजपा ने महज 8 सीटें जीती थीं। 2025 में 6 गुना ज्यादा यानी 48 से ज्यादा सीटों पर जीती।
- केजरीवाल की नई दिल्ली सीट पर 20 उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। इन्हें मिले वोट तीन अंक तक भी नहीं पहुंच सके।
- कांग्रेस के 70 में से 67 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। कस्तूरबा नगर से अभिषेक दत्त (27019 वोट) दूसरे स्थान पर रहे। इनके अलावा, बादली से देवेंद्र यादव (41071 वोट) और नांगलोई जाट से रोहित चौधरी (32028 वोट) तीसरे स्थान पर रहे।
- केजरीवाल को प्रवेश वर्मा ने 4089 वोटों से हराया, जबकि संदीप दीक्षित को 4568 वोट ही मिले।
- भाजपा के दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे चुनाव जीत गए हैं। नई दिल्ली से प्रवेश वर्मा और मोतीनगर से हरीश खुराना। प्रवेश पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं। खुराना पूर्व सीएम मदन लाल खुराना के बेटे हैं।
- 2020 दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन मुस्तफाबाद सीट से तीसरे नंबर पर रहे। वे ओवैसी की पार्टी AIMIM से चुनाव लड़े थे। यहां से भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट ने जीत दर्ज की। दूसरे नंबर पर AAP रही।
केजरीवाल के हार की 6 बड़ी वजह
- करप्शन के आरोप लगे, 177 दिन जेल में रहे: केजरीवाल शराब नीति केस में कुल 177 दिन जेल में रहे। BJP ने अपने चुनावी कैंपेन में इसे मुद्दा बनाया। केजरीवाल खुद को ‘कट्टर ईमानदार’ कहते थे। BJP ने उन्हें बार-बार ‘कट्टर बेईमान’ कहा।
- सरकारी बंगले ‘शीशमहल’ पर 45 करोड़ खर्च: केजरीवाल के सरकारी बंगले के रेनोवेशन पर 45 करोड़ रुपए खर्च किए जाने को BJP ने मुद्दा बनाया। चुनाव के पहले इसे ‘शीशमहल’ कहकर प्रचारित किया।
- केजरीवाल के खिलाफ मोदी खुद चेहरा बने: BJP ने इस चुनाव को PM मोदी बनाम केजरीवाल बनाया। प्रधानमंत्री ने अपने नाम पर वोट मांगे।
- केंद्र ने वोटिंग से 3 दिन पहले 12 लाख तक इनकम टैक्स फ्री की: दिल्ली में 67% आबादी मिडिल क्लास है। पिछले चुनावों में मिडिल क्लास ने AAP को एकतरफा वोट किया था। इस फैसले का असर पड़ा।
- महिलाओं और बुजुर्गों को आर्थिक मदद का ऐलान: मोदी ने हर रैली में कहा कि हम मौजूदा सरकार की किसी भी कल्याणकारी योजना को बंद नहीं करेंगे। वहीं, महिलाओं और 60-70 साल के बुजुर्गों को हर महीने 2500 रुपए देने का ऐलान किया।
- 67 प्रतिशत उम्मीदवार बदल दिए: BJP ने इस बार कुल 68 उम्मीदवार उतारे। इसमें पिछले चुनाव वाले 46 प्रत्याशी बदल दिए। यानी BJP ने 67 प्रतिशत कैंडिडेट बदले।
शीशमहल बनवाया, लग्जरी कारों में घूमे: प्रशांत भूषण ने AAP की हार के लिए केजरीवाल को ठहराया जिम्मेदार
आम आदमी पार्टी (आप) के संस्थापक सदस्य प्रशांत भूषण ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के लिए अरविंद केजरीवाल को जिम्मेदार माना है. प्रशांत भूषण ने एक्स पर एक पोस्ट कर लिखा, दिल्ली में AAP की हार के लिए केजरीवाल काफी हद तक जिम्मेदार हैं. वैकल्पिक राजनीति के लिए बनी एक पार्टी जिसे पारदर्शी, जवाबदेह और लोकतांत्रिक माना जाता था, उसे अरविंद ने जल्दी ही एक सुप्रीमो के वर्चस्व वाली, अपारदर्शी और भ्रष्ट पार्टी में बदल दिया, जिसने लोकपाल की मांग नहीं की और अपने खुद के लोकपाल को हटा दिया. उन्होंने अपने लिए 45 करोड़ का शीश महल बनवाया और लग्जरी कारों में घूमने लगे.उन्होंने AAP द्वारा गठित विशेषज्ञ समितियों की 33 विस्तृत नीति रिपोर्टों को यह कहते हुए रद्दी में डाल दिया कि पार्टी समय आने पर उचित नीतियां अपनाएगी. उन्हें लगता था कि राजनीति केवल दिखावे और दुष्प्रचार से ही की जा सकती है. यह AAP के अंत की शुरुआत है.

दिल्ली में बीजेपी की प्रचंड जीत के पीछे प्रचंड प्लानिंग
बीजेपी ने इस चुनाव को एक मिशन की तरह लिया और हर स्तर पर दूसरी पार्टियों की तुलना में जबरदस्तर प्लानिंग की. उसकी इसी प्लानिंग और तैयारी का नतीजा उसे इस परिणाम के तौर पर मिला है. चाहे बात रैलियों की हो या फिर रोड शो की या फिर माइक्रोमैनेजमेंट लेवल पर काम करने की, हर स्तर पर बीजेपी दूसरों पर भारी पड़ी है. इस चुनाव की महत्ता को समझते हुए बीजेपी के कैंपेन की बागडोर दूसरे चुनावों की तरह ही यहां भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद संभाली. उन्होंने दिल्ली में तीन रैलियां की. इन रैलियों के माध्यम से पीएम मोदी ने अलग-अलग वर्ग के मतदाताओं को खुद से जोड़ा. उन्हें यकीन दिलाया कि भाजपा उनके विकास को सुनिश्चित करने वाली पार्टी है. पीएम मोदी के साथ-साथ गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली में 16 रैलियां की, इनमें कई रोड शो भी शामिल थे. वहीं पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी कुल 6 रैलियां की. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ भी इस चुनावी समर में उतरे और उन्होंने पार्टी के कुल 6 रैलियां की. इन बड़े नेताओं के अलावा पार्टी ने अन्य लोकप्रिय नेताओं को चुनाव प्रचार में शामिल किया. इस लिस्ट में केंद्रीय मंत्रियों में राजनाथ सिंह ,नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान,मनोहर लाल खट्टर,हरदीप सिंह पुरी,धर्मेंद्र प्रधान,ज्योतिरादित्य सिंधिया,भूपेन्द्र यादव,गिरिराज सिंह और गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे बड़े चेहरे शामिल रहे. इस चुनाव में बीजेपी कहीं से भी किसी दूसरी पार्टी को मौका देना नहीं चाहती थी. यही वजह थी कि पार्टी ने हर केंद्रीय मंत्री को दो विधानसभा सीटों की ज़िम्मेदारी दी. इतना ही नहीं पड़ोस के राज्यों के विधायकों,मंत्रियों और सांसदों को बुलाया गया. मुख्यमंत्रियों में योगी आदित्यनाथ के अलावा देवेंद्र फडणवीस,हिमंत बिस्वा सरमा, पुष्कर सिंह धामी, भजन लाल शर्मा, नायब सिंह सैनी और मोहन यादव को भी कई अहम जिम्मेदारी सौंपी गई. पूर्वांचली चेहरों में से मनोज तिवारी, रवि किशन और दिनेश लाल यादव निरहुआ से भी पार्टी ने जमकर प्रचार कराया. दलित वर्ग के साथ 4500 से अधिक, विभिन्न वर्गों की महिलाओं के साथ 7500, मुस्लिम समाज के साथ 1700 बैठकें की गईं. ओबीसी समाज के साथ पांच हज़ार से ज़्यादा बैठके भी हुई. बीजेपी ने इस चुनाव प्रचार के दौरान हर उस बात का ध्यान रखा जो उसे जीत दिलाने में अहम भूमिका निभा सकती थी. आरएसएस ने दस हज़ार से अधिक ड्राइंग रूम बैठकें कीं. आरएसएस की ओर से मुस्लिम बुद्धिजीवियों से भी संपर्क साधा गया. सहयोगी दलों को साथ लिया गया. जेडीयू और एलजेपी को सीटें दी गईं ताकि बिहार चुनाव के लिए भी तालमेल करने में दिक़्क़त न आए. प्रचार के लिए टीडीपी और जेडीयू नेताओं को भी बुलाया गया. दक्षिण भारतीय राज्यों के मतदाताओं की पहचान की गई. चंद्रबाबू नायडू ने तेलुगु भाषी मतदाताओं से संपर्क किया, कर्नाटक के बीजेपी नेताओं को कन्नड़ भाषी मतदाताओं से संपर्ककी ज़िम्मेदारी दी गई. उत्तराखंड बीजेपी नेताओं को पहाड़ी मतदाताओं से संपर्क को कहा गया , थिंक टैंक बनाया गया.