citizenexpress.in

मनमोहन सिंह के चार महत्वपूर्ण काम

नई दिल्ली प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में निधन हो गया। 1991 से 1996 तक वे भारत के वित्त मंत्री भी रहे आज की युवा पीढ़ी उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में जानती है लेकिन वित्त मंत्री के तौर पर उन्होंने जो काम किए वो आज भी भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था की नींव हैं उनके चार महत्वपूर्ण फैसलों ने भारत की अर्थव्यवस्था और समाज को हमेशा के लिए बदल दिया।

1.आर्थिक उदारीकरण

1991 का साल भारत के लिए बहुत मुश्किल था. देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था. विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका था, और देश दिवालिया होने की कगार पर था. ऐसे कठिन समय में, वित्त मंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह ने कमान संभाली. उन्होंने उस समय के प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के साथ मिलकर, अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए क्रांतिकारी फैसले लिए. पहले भारत में कोई भी उद्योग शुरू करने के लिए सरकार से कई तरह के लाइसेंस लेने पड़ते थे. इस प्रक्रिया में बहुत समय लगता था और भ्रष्टाचार भी बहुत था. डॉ. सिंह ने इस “लाइसेंस राज” को खत्म कर दिया, जिससे व्यापार करना आसान हो गया. उन्होंने आयात और निर्यात पर लगे प्रतिबंधों को कम किया, जिससे विदेशी कंपनियों के लिए भारत में व्यापार करना आसान हो गया. डॉ. सिंह ने विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया. इससे देश में नई तकनीक आई, रोजगार बढ़ा और अर्थव्यवस्था मजबूत हुई. इन सुधारों को “आर्थिक उदारीकरण” कहा जाता है. इन सुधारों का नतीजा ये हुआ कि भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ने लगी, विदेशी निवेश बढ़ा, और भारत दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया. आज जो आप भारत की तरक्की देख रहे हैं, उसकी नींव 1991 में डॉ. मनमोहन सिंह ने ही रखी थी.

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) (2005)

2004 में डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने गरीबों और ग्रामीण भारत के विकास पर विशेष ध्यान दिया. 2005 में उन्होंने “राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम” (नरेगा) लागू किया. इस योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में रहने वाले हर परिवार को साल में कम से कम 100 दिन मजदूरी की गारंटी दी गई. अगर सरकार 100 दिन का काम नहीं दे पाती थी, तो उसे बेरोजगारी भत्ता देना पड़ता था. इस योजना से ग्रामीण इलाकों में गरीबी कम हुई और लोगों का शहरों की ओर पलायन भी कम हुआ. बाद में इस योजना का नाम बदलकर “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम” (मनरेगा) कर दिया गया. यह योजना आज भी ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है.

सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) (2005)

डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने 2005 में “सूचना का अधिकार अधिनियम” (RTI) लागू किया. यह एक क्रांतिकारी कानून था, जिसने आम आदमी को सशक्त बनाया. इस कानून के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी विभाग से जानकारी मांग सकता है. इससे सरकारी कामों में पारदर्शिता आई और भ्रष्टाचार कम हुआ. सरकारी अधिकारियों को अब पता था कि उनके काम पर जनता की नजर है, इसलिए वे ज्यादा जिम्मेदारी से काम करने लगे.

भारत-अमेरिका परमाणु समझौता (2008)

डॉ. मनमोहन सिंह ने 2008 में अमेरिका के साथ एक ऐतिहासिक “परमाणु समझौता” किया. इस समझौते को “123 समझौता” भी कहा जाता है. इस समझौते के तहत भारत को अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु तकनीक और ईंधन मिलने का रास्ता खुल गया. भारत ने “परमाणु अप्रसार संधि” (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, फिर भी यह समझौता हुआ. यह डॉ. मनमोहन सिंह की कूटनीतिक सफलता थी. इस समझौते से दुनिया में भारत का कद बढ़ा और भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता मिली. इस समझौते ने भारत के विकास को नई गति दी. तो ये थे डॉ. मनमोहन सिंह के 4 सबसे बड़े फैसले, जिन्होंने भारत को बदल दिया. वे एक दूरदर्शी नेता थे, जिन्होंने भारत को आर्थिक संकट से निकाला, गरीबों को सशक्त बनाया, प्रशासन में पारदर्शिता लाई और दुनिया में भारत का कद बढ़ाया. उनकी कमी हमेशा महसूस होगी.

मुश्किलों भरे बचपन से लेकर देश को नई ऊंचाइयां दिलाने तक डॉ. मनमोहन सिंह का सफर

डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था. जिस गांव में उनका जन्म हुआ था उसका नाम गाह था. जब देश का बंटवारा हुआ तो मनमोहन सिंह का परिवार अमृतसर आकर बस गया. इसके बाद वो और उनका परिवार भारत में ही रहा.डॉ. 1948 में ईस्ट पंजाब यूनिवर्सिटी सोनल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी. इसके बाद उन्होंने 1950 में हिंदू कॉलेज अमृतसर (पंजाब यूनिवर्सिटी) से इंटर की परीक्षा पास की थी. हिंदू कॉलेज से ही उन्होंने 1952 में बीए किया. जबकि 1954 में होशियारपुर स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी कॉलेज से एमए की डिग्री ली. 1957 में उन्होंने ट्रीपोस (मास्टर्स) की डिग्री यूके के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के सेंट जॉन्स कॉलेज से ली थी. 1962 में डॉ.मनमोहन सिंह ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से डी.फिल की डिग्री ली.  मनमोहन सिंह का शुरुआती जीवन संघर्षों से भरा हुआ था. उनके जीवन के शुरुआती संघर्षों का जिक्र मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने अपनी किताब में भी इसका जिक्र किया है. कहा जाता है कि उन्हें किस तरह पैसों की किल्लत से दो चार होना पड़ा था. अपने संघर्ष के दिनों में भी मनमोहन सिंह ने मेहनत करना नहीं छोड़ा और वह लगन के साथ अपना एक अलग मुकाम बनाने में लगे रहे. 

जब पहली बार पीएम बनाए जाने का हुआ था ऐलान

2004 के लोकसभा चुनाव की मतगणना तक किसी को अंदाजा नहीं था कि अटल सरकार चुनाव हार सकती है. सभी चुनावी विश्लेषक एनडीए सरकार की वापसी का दावा कर रहे थे. मतगणना के शुरुआती रुझानों में भाजपा पिछड़ी तो लगा कि ये शुरुआती रुझान हैं. बीजेपी वापसी जरूर करेगी, लेकिन वो संभव न हो सका. कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए चुनाव जीत गई. माना जा रहा था कि सोनिया गांधी ही अब प्रधानमंत्री बनेंगी. हालांकि, 1998 में सोनिया गांधी के राजनीति में आते ही विदेशी मूल के मुद्दे को लेकर शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा जैसे कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी छोड़ दी और 10 जून 1999 को नई पार्टी बना ली थी. फिर भी चूकि नंबर यूपीए के पक्ष में थे और शरद पवार से लेकर लालू यादव तक सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने को लेकर दावे कर रहे थे, तो लग रहा था कि इस जीत के बाद अब विदेशी मूल का मुद्दा समाप्त हो चला है. बीजेपी के भी ज्यादातर नेता खामोश थे, तभी सुषमा स्वराज और उमा भारती ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को गरमा दिया था. सुषमा स्वराज ने तो यहां तक कह दिया था कि सोनिया गांधी ने पीएम पद की शपथ ली तो अपने केश कटवा लेंगी. मामला फिर बेहद गर्म हो गया था.फिर भी चूकि नंबर यूपीए के पक्ष में थे और शरद पवार से लेकर लालू यादव तक सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने को लेकर दावे कर रहे थे, तो लग रहा था कि इस जीत के बाद अब विदेशी मूल का मुद्दा समाप्त हो चला है. बीजेपी के भी ज्यादातर नेता खामोश थे, तभी सुषमा स्वराज और उमा भारती ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को गरमा दिया था. सुषमा स्वराज ने तो यहां तक कह दिया था कि सोनिया गांधी ने पीएम पद की शपथ ली तो अपने केश कटवा लेंगी. मामला फिर बेहद गर्म हो गया थानटवर सिंह के अनुसार राहुल गांधी ने सोनिया गांधी को उनकी बात मानने के लिए 24 घंटे का वक्त दिया. इसी के साथ उनकी बात न मानने पर किसी हद तक जाने की धमकी दी. राहुल गांधी के यह कहने पर कि वे उन्हें प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने से रोकने के लिए हर मुमकिन कदम उठाएंगे, सोनिया गांधी की आंखों में आंसू आ गए. मनमोहन सिंह बिल्कुल चुप थे. प्रियंका ने कहा था ” राहुल कुछ भी कर सकते हैं.” राहुल की जिद ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी ठुकराने के लिए मजबूर कर दिया था. वहीं नीरजा चौधरी ने अपनी किताब How Prime Ministers Decide में लिखा है कि इस घटनाक्रम के कुछ ही दिन बाद नटवर सिंह के अलावा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी उन्हें बताया था कि सोनिया गांधी के बच्चे नहीं चाहते कि वे प्रधानमंत्री पद स्वीकार करें, क्योंकि उनकी जिंदगी खतरे में पड़ने की आशंका से वे डरे हुए हैं.

पीएम मोदी ने सदन में की थी डॉ. मनमोहन सिंह की तारीफ

बात इसी साल 8 फरवरी 2024 की है, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यसभा में देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तारीफ की थी. उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह की सराहना करते हुए पीएम मोदी ने उन्हें ‘प्रेरक उदाहरण’ बताया और कहा कि जब भी लोकतंत्र की चर्चा होगी तो उनके योगदान को याद किया जाएगा.राज्यसभा से सेवानिवृत्त हो रहे सदस्यों की विदाई के अवसर पर उच्च सदन को संबोधित करते हुए उन्होंने कांग्रेस की ओर से केंद्र सरकार के खिलाफ ‘ब्लैक पेपर’ जारी किए जाने का स्वागत भी किया और विपक्षी पार्टी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि देश की समृद्धि को नजर ना लगे, इसके लिए ‘काला टीका’ बहुत जरूरी होता है.पीएम मोदी मोदी ने कहा कि मैं विशेष रूप से मनमोहन सिंह जी का स्मरण करना चाहूंगा. छह बार इस सदन में वो अपने मूल्यवान विचारों से और नेता के रूप में भी और प्रतिपक्ष में भी नेता के रूप में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है. मोदी ने कहा कि वैचारिक मतभेदों के कारण कभी बहस के दौरान छींटाकशी हो जाती है लेकिन वह बहुत अल्पकालीन होता है.

error: Content is protected !!
Scroll to Top