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कांग्रेस-शिवसेना उद्धव गुट आमने सामने, कर्नाकट में भारी बवाल

नई दिल्ली: कर्नाटक पुलिस ने सोमवार को शिवसेना (यूबीटी) के प्रतिनिधियों को महाराष्ट्र की सीमा पर वार्षिक मराठी सम्मेलन में भाग लेने के लिए बेलगावी में प्रवेश करने से रोक दिया. इसके बाद इस मामले पर राजनीतिक संग्राम तेज हो गया. और माहुयति गठबंधन की 2 बड़ी पार्टी कांग्रेस और शिवसेना उद्धव गुट आमने सामने आ गए. कर्नाटक सरकार ने इस साल बेलगावी में महाराष्ट्र एकीकरण समिति के मराठी सम्मेलन पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो कर्नाटक विधानसभा के शीतकालीन सत्र की शुरुआत के साथ हुआ था. इसने महाराष्ट्र के राजनेताओं को भी इस कार्यक्रम में शामिल होने से रोक दिया.

हर साल की तरह, समिति ने इस साल भी शिवसेना अध्यक्ष एकनाथ शिंदे, एनसीपी प्रमुख अजीत पवार, एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार, शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और भाजपा के राज्य प्रमुख चंद्रशेखर बावनकुले जैसे महाराष्ट्र के प्रमुख राजनेताओं को आमंत्रित किया था. उद्धव गुट ने समिति के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और कोल्हापुर से उसके प्रतिनिधियों ने अंतर-राज्यीय सीमा पर महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों तरफ से भारी पुलिस बल की मौजूदगी के बीच बेलगावी की ओर मार्च शुरू किया.जैसे ही प्रतिनिधिमंडल सीमा पर पहुंचा, कर्नाटक पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया. महाराष्ट्र पुलिस ने पुणे-बेंगलुरु एनएच 48 पर सड़क जाम करने के लिए सेना (यूबीटी) के प्रतिनिधियों को हिरासत में लिया और उन्हें वापस कागल ले आई. कम से कम 50 महाराष्ट्र एकीकरण समिति के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया.

क्या है बेलगाव विवाद?
बेलगाव विवाद भारत के दो राज्यों, महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच एक लंबे समय से चली आ रही सीमा विवाद है. यह विवाद मुख्य रूप से बेलगाव जिले को लेकर है, जो वर्तमान में कर्नाटक राज्य का हिस्सा है. साल 1956 में जब भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर किया गया, तो बेलगाव जिला कर्नाटक राज्य को आवंटित किया गया था. महाराष्ट्र का तर्क है कि बेलगाव जिले में मराठी भाषी लोगों की बहुलता है और इसलिए यह क्षेत्र भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से महाराष्ट्र का हिस्सा होना चाहिए. वहीं कर्नाटक का कहना है कि बेलगाव सदियों से कर्नाटक का हिस्सा रहा है और यहां की संस्कृति कन्नड़ संस्कृति से अधिक जुड़ी हुई है.

हाल के दिनों में क्यों बढ़ा विवाद?
दोनों राज्यों में चुनाव के दौरान यह मुद्दा अक्सर राजनीतिक दलों द्वारा उछाला जाता है और इससे तनाव बढ़ जाता है. राजनीतिक दलों की अपनी ओर जनता को करने की लालसा होती है लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि यदि तनाव बढ़ेगा तो यह दोनों राज्यों के लोगों के लिए नुकसान दायक होगा. बेलगाव में मराठी और कन्नड़ दोनों भाषाओं के बोलने वाले लोग हैं, जिससे भाषाई तनाव भी बढ़ता है. दोनों समुदायों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों को लेकर भी तनाव रहता है.

आदित्य ठाकरे ने की UT बनाने की मांग, सिद्धारमैया बोले- ये डिमांड बचकानी है

महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और शिवसेना (UBT) लीडर आदित्य ठाकरे ने सीएम देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर बेलगाम को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव लाने को कहा है. उन्होंने यह भी कहा कि शिवसेना (UBT) इस प्रस्ताव का सर्वसम्मति से समर्थन करेगी. इसके साथ ही बेलगाम को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजें और उस पर कार्रवाई करें. आदित्य ठाकरे का कहना है कि बेलगाम और कारवार सीमा पर मराठी भाषी आबादी को इंसाफ दिलाने के लिए यह जरूरी है. आदित्य ठाकरे बेलगाम पर एक बयान दिया, जिसके बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस पर जवाब दिया है. मुख्यमंत्री ने सोमवार को शिवसेना (UBT) नेता आदित्य ठाकरे की बेलगाम को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग को “बचकाना” बताया. कर्नाटक के बेलगाम में मराठी भाषी लोगों के खिलाफ हुई घटनाओं की निंदा करते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “राज्य के 12 करोड़ लोग और दुनिया भर के मराठी लोग पड़ोसी राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले मराठी भाषी लोगों के साथ खड़े हैं.” फडणवीस ने कहा, “हम बेलगाम सहित सीमावर्ती इलाकों में मराठी भाषी लोगों के साथ कर्नाटक सरकार द्वारा किए जा रहे अन्याय की निंदा करते हैं. कर्नाटक सरकार का यह रुख कि मराठी लोगों को बैठकें नहीं करनी चाहिए, संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. देश की आजादी से पहले महाराष्ट्र को बंबई रियासत के नाम से जाना जाता था. कर्नाटक के विजयपुरा, बेलगावी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ पहले बंबई रियासत का हिस्सा थे. आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब बेलगावी नगरपालिका ने मांग की थी कि उसे प्रस्तावित महाराष्ट्र में शामिल किया जाए, क्योंकि यहां मराठी भाषी ज्यादा है. 

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