मनोज वर्मा;
नई दिल्ली।संविधान दिवस यह हर वर्ष 26 नवंबर को मनाया जाता है। इसे राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन वर्ष 1949 में भारत की संविधान सभा ने औपचारिक रूप से भारत के संविधान को अपनाया जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। 19 नवंबर 2015 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने के भारत सरकार के निर्णय को अधिसूचित किया। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा में अपने समापन भाषण में कहा था आखिरकार एक मशीन की तरह संविधान भी निर्जीव है इसमें प्राणों का संचार उन व्यक्तियों द्वारा होता है जो इस पर नियंत्रण करते हैं तथा इसे चलाते हैंण् भारत को ऐसे लोगों की जरूरत है जो ईमानदार हों और देश के हित को सर्वोपरि रखें हमारे जीवन में विभिन्न तत्वों के कारण विघटनकारी प्रवृत्ति उत्पन्न हो रही है हममें सांप्रदायिक अंतर हैंए जातिगत अंतर हैंए भाषागत अंतर हैं प्रांतीय अंतर हैं अतः इस संविधान के लिए दृढ़ चरित्र वाले लोगों की दूरदर्शी लोगों की जरूरत हैए जो छोटे.छोटे समूहों तथा क्षेत्रों के लिए देश के व्यापक हितों का बलिदान न दें और उन पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ सकें जो इन अंतरों के कारण उत्पन्न होते हैंण् हम केवल यही आशा कर सकते हैं कि देश में ऐसे लोग प्रचुर संख्या में सामने आएंगे।
बाबासाहब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने जो प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे संविधान के अधिनियमित आत्मार्पित व अंगीकृत होने से ऐन पहले 25 नवम्बर 1949 को उसे अपने सपनों का अथवा तीन लोक से न्यारा मानने से इनकार कर दिया था विधि मंत्री के तौर पर अपने पहले ही साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि यह संविधान अच्छे लोगों के हाथ में रहेगा तो अच्छा सिद्ध होगा लेकिन बुरे हाथों में चला गया तो इस हद तक नाउम्मीद कर देगा कि किसी के लिए भी नहीं नजर आयेगा उनके शब्द थे मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो यदि वे लोग जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाये खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान खराब सिद्ध होगा दूसरी ओर संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो यदि वे लोग जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा। उन्होंने चेताया था कि संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता संविधान केवल विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगों का प्रावधान कर सकता है उन अंगों का संचालन लोगों पर तथा उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाये जाने वाले राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है। आज हम अपनी राजनीति में नियमों नीतियों सिद्धांतों नैतिकताओं उसूलों व चरित्र के जिन संकटों से दो.चार हैं संविधान निर्माताओं ने उनके अंदेशे उन्होंने तभी भांप लिये थे दुःख की बात है कि तब किसी ने भी उनकी आशंकाओं पर गंभीरता नहीं दिखाई और आज कई बार हमें उनके पार जाने का रास्ता ही नहीं दिखता। ऐसे में जब संविधान दिवस के अवसर पर जब कोई संविधान के मूल्यों की रक्षा को लेकर आशंकित हो रहा हैए कोई उसकी समीक्षा पर जोर दे रहा और कोई उसके पुनर्लेखन की जरूरत जता रहा है बेहतर होगा कि हम खुद को उस आईने के समक्ष खड़ा करें जो दिखा सके कि हम डॉ राजेन्द्र प्रसाद और बाबासाहब द्वारा अपने बनाये संविधान और उसके वारिसों के तौर पर हमसे की गई अपेक्षाओं पर कितने खरे उतरे हैं।
हमारे संविधान निर्माताओं ने अपने ज्ञान विवेक दूरदर्शिता और परिश्रम द्वारा एक ऐसा कालजयी और जीवंत दस्तावेज़ तैयार किया जिसमें हमारे आदर्शों और आकांक्षाओं के साथ.साथ हम सभी भारतवासियों का भविष्य भी संरक्षित है। भारत का संविधान विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र का आधार ग्रंथ है। यह हमारे देश की लोकतान्त्रिक संरचना का सर्वोच्च कानून है जो निरंतर हम सबका मार्गदर्शन करता है। यह संविधान हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था का उद्गम भी है और आदर्श भी। 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में अपना अंतिम भाषण देते हुए डॉक्टर आंबेडकर ने कहा था कि संविधान की सफलता भारत की जनता और राजनीतिक दलों के आचरण पर निर्भर करेगी। भय प्रलोभन राग द्वेष पक्षपात और भेदभाव से मुक्त रहकर शुद्ध अन्तःकरण के साथ कार्य करने की भावना को हमारे महान संविधान निर्माताओं ने अपने जीवन में पूरी निष्ठा व ईमानदारी से अपनाया था। उनमें यह विश्वास जरूर रहा होगा कि उनकी भावी पीढ़ियां अर्थात हम सभी देशवासी भी उन्हीं की तरहए इन जीवन.मूल्यों को उतनी ही सहजता और निष्ठा से अपनाएंगे। आज इस पर हम सबको मिलकर आत्म.चिंतन करने की जरूरत है। डॉक्टर आंबेडकर ने संविधान सभा के अपने एक भाषण में संवैधानिक नैतिकता के महत्व को रेखांकित करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया था कि संविधान को सर्वोपरि सम्मान देना तथा वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर संविधान सम्मत प्रक्रियाओं का पालन करना संवैधानिक नैतिकता का सार.तत्व है। सरकार के तीनों अंगों संवैधानिक पदों को सुशोभित करने वाले सभी व्यक्तियों सिविल सोसाइटी के सदस्यों तथा सभी सामान्य नागरिकों द्वारा संवैधानिक नैतिकता का पालन किया जाना अपेक्षित है। हमारे संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह संविधान के आदर्शों और संस्थाओं का आदर करे आज़ादी की लड़ाई के आदर्शों को दिल में संजोए रखे और उनका पालन करे ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध हैं हमारी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे। इनके अतिरिक्तए संविधान में नागरिकों के अन्य कर्तव्यों का भी उल्लेख किया गया है।
कर्तव्य और अधिकार के विषय में महात्मा गांधी ने कहा था कि अधिकारों की उत्पत्ति का सच्चा स्रोत कर्तव्यों का पालन है। यदि हम सब अपने कर्तव्यों का पालन करें तो अधिकारों को ज्यादा ढूंढने की जरूरत नहीं रहेगी। लेकिन यदि हम कर्तव्यों को पूरा किए बिना अधिकारों के पीछे दौड़े तो वह मृग.मरीचिका के पीछे पड़ने जैसा ही व्यर्थ सिद्ध होगा। हमारी संसद ने मूल कर्तव्यों के प्रावधानों को संविधान में शामिल करके यह स्पष्ट किया है कि नागरिकों को अपने अधिकारों के बारे में सचेत रहने के साथ साथ अपने कर्तव्यों के प्रति भी जागरूक रहना है। मूल कर्तव्य नागरिकों को उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी का एहसास भी कराते हैं। हमारे संविधान की प्रस्तावना मूल अधिकारों निदेशक तत्त्वों और मूल कर्तव्यों में संविधान की अंतरात्मा को देखा जा सकता है।अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल अधिकार भी है और सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखने तथा हिंसा से दूर रहने का कर्तव्य भी। अतः अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत अर्थ लगाकर यदि कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाने जा रहा है तो उसे ऐसे हिंसात्मक व अराजकता.पूर्ण काम से रोकने वाले व्यक्ति जिम्मेदार नागरिक कहलाएंगे। जरूरत इस बात की है कि हम सब अपने कर्तव्यों को निभाकर ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करेंए जहां अधिकारों का प्रभावी संरक्षण हो सके। संविधान द्वारा हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया गया सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य और आदर्श है सभी नागरिकों के लिए सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय तथा प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराना। हमारे संविधान में समावेशी समाज के निर्माण का आदर्श भी है और इसके लिए समुचित प्रावधानों की व्यवस्था भी। हमारे देश में हर प्रकार की परिस्थिति का सामना करने के लिए संविधान.सम्मत रास्ते उपलब्ध हैं। इसलिए हम जो भी कार्य करें उसके पहले यह जरूर सोचें कि क्या हमारा कार्य संवैधानिक मर्यादा गरिमा व नैतिकता के अनुरूप है।