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दलाई लामा के पुनर्जन्म की तिब्बती परंपरा

नई दिल्ली ( वरिष्ठ पत्रकार विजय क्रांति ) । छह जुलाई को जन्मतिथि से तीन दिन पहले धर्मशाला में अपनी दीर्घायु के लिए आयोजित प्रार्थना सभा में दलाई लामा ने घोषणा की कि दलाई लामा के पुनर्जन्म की तिब्बती परंपरा उनके बाद भी कायम रहेगी और उनके नए अवतारी बालक को खोजने का एकमात्र अधिकार और जिम्मेदारी तिब्बती धर्म संस्था गंदेन फोड्रांग के पास रहेगी। उन्होंने चीनी दावों को चुनौती देते हुए कहा कि किसी गैर तिब्बती और बाहरी शक्ति को इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है। दलाई लामा के इस बयान से बौखलाए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि इस खोज और नियुक्ति का अधिकार दलाई लामा का नहीं बल्कि केवल चीन सरकार का है और अगले दलाई लामा की खोज एक स्वर्ण कलश में डाले गए नामों में से लॉटरी के आधार पर होगी। इससे दलाई लामा उनके पुनर्जन्म की परंपरा और तिब्बत पर दुनिया का ध्यान फिर से केंद्रित हो गया।

इस बीच दलाई लामा की 90 वीं जयंती के अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार तिब्बत विशेषज्ञ फोटोग्राफर और तिब्बती नेता के लंबे समय से करीबी सहयोगी विजय क्रांति ने आध्यात्मिक नेता के साथ अपने 50 वर्षों से अधिक के जुड़ाव को अपनी तस्वीरों के माध्यम से प्रदर्शित किया है। उन्होंने नई दिल्ली स्थित एआईएफएसीएस आर्ट गैलरी में दलाई लामा के कुछ विशिष्ट रोचक और ऐतिहासिक चित्रों तथा कैमरा अध्ययन की एक अनूठी फोटो प्रदर्शनी लगाई। उन्होंने ये तस्वीरें पिछले पांच दशकों में दलाई लामा के साथ भारत और कुछ अन्य देशों में उनके निजी फोटोग्राफर के रूप में की गई अनेक एक एक साक्षात्कार बैठकों और यात्राओं के दौरान ली हैं। विजय क्रांति बताते है कि जब मैं पहली बार दलाई लामा से मिला था तब मैं 23 साल का था। मुझे लगा था कि वे भी दूसरे आध्यात्मिक नेताओं की तरह ही होंगे जो अक्सर बहुत आत्मकेंद्रित होते हैं और अपनी सुख सुविधाओं को लेकर ज्यादा चिंतित रहते हैं लेकिन जब मैंने तिब्बती समुदाय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और लोगों के साथ उनके जुड़ाव को देखा तो मैं काफी प्रभावित हुआ।

एक वरिष्ठ भारतीय पत्रकार एक कुशल फ़ोटोग्राफ़र और एक प्रशंसित तिब्बती विद्वान विजय क्रांति ने 1972 में एक समाचार पत्र के माध्यम से तिब्बती समुदाय और उसके नेता परम पावन दलाई लामा के साथ अपने पेशेवर संपर्क की शुरुआत की। तब से वे तिब्बत के विभिन्न पहलुओं पर लगातार लिखते रहे हैं और तिब्बती समुदाय के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के व्यापक छायाचित्रण किए हैं। उनकी कॉफ़ी टेबल बुक दलाई लामा द नोबेल पीस लॉरेट स्पीक्स जो दलाई लामा के साथ फ़ोटोग्राफ़ी और व्यक्तिगत साक्षात्कारों पर आधारित है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अपनी तरह की एकमात्र पुस्तक के रूप में उभर कर सामने आई है। उनकी नवीनतम कॉमिक बुक दलाई लामा द सोल्जर ऑफ़ पीस जो अंग्रेज़ी तिब्बती और हिंदी में प्रकाशित हुई है भी काफ़ी लोकप्रिय रही है। विजय क्रांति कहते हैं कि  विश्व बिरादरी के मन में यह उत्सुकता है कि आखिर एक निहत्थे बूढ़े और शरणार्थी धर्मगुरु में ऐसा क्या है कि इतनी बड़ी सैन्य राजनीतिक और आर्थिक शक्ति नए अवतारी बच्चे पर कब्जा जमाने के लिए क्यों पगलाई हुई है यहां केवल दो मूल बातों को समझना होगा।एक तो यह कि तिब्बत की धार्मिक सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था में दलाई लामा को सर्वोच्च धार्मिक गुरु और शासक का दर्जा प्राप्त है। तिब्बत में दलाई लामा की मृत्यु के बाद अगले शासक और धर्मगुरु की जिम्मेदारी किसी चुनाव या पारिवारिक विरासत के आधार पर नहीं तय होती। उनके नए अवतार को इस पद पर बिठाया जाता है।

वर्तमान दलाई लामा इस परंपरा में 14वें हैं। माना जाता है कि दलाई लामा और दूसरे सिद्ध लामाओं में अपने अगले जन्म के बारे में फैसला करने और उससे जुड़े पूर्वानुमानों की शक्ति होती है। हर बड़ा लामा अपने अगले अवतार के बारे में विस्तृत जानकारी छोड़ जाता है। बाद में इस जानकारी और कुछ अन्य अनुष्ठानों की मदद से अन्य लामा उस काल में पैदा हुए सैकड़ों बच्चों में से सही अवतार को खोज लेते हैं।तिब्बत और चीन के पुराने ऐतिहासिक संबंधों में दसवें दलाई लामा की खोज के समय चीन के मंचू राजा ने तिब्बत में इस विषय पर खड़े विवाद को एक स्वर्ण कलश में पर्चियां डाल कर लाटरी के माध्यम से तय किया था। बाद में चीन पर 1912 में विदेशी मंचू शासन की समाप्ति होने पर वहां चीनी शासन स्थापित हुआए जिसे 1949 की हिंसक कम्युनिस्ट क्रांति में माओ ने पलट दिया। सत्ता में आने के तुरंत बाद माओ की सेना ने उसी साल ईस्ट तुर्किस्तान शिनजियांग और 1951 में तिब्बत पर कब्जा करके चीन को विशाल विस्तार दे दिया। वर्तमान दलाई लामा को 1959 में तब भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी जब चीनी कब्जे के खिलाफ तिब्बती जनता के जन उभार को चीनी कम्युनिस्ट शासन ने बेरहमी से कुचल डाला। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों के अनुसार इस अभियान में चीनी सेना ने एक पखवाड़े में ही 80 हजार से ज्यादा तिब्बती नागरिकों की हत्या कर डाली थी। 1959 के बाद से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी चीनी सेना और चीन सरकार तिब्बती जनता को अपने वश में करने और दलाई लामा के प्रभाव को खत्म करने के लिए वहां हर तरह के हथकंडे अपना चुकी है।

1987 और 1989 के तिब्बती जनांदोलन में चीनी शासकों को यह देखकर बहुत सदमा लगा कि दो पीढ़ियों के बाद भी तिब्बती युवाओं में तिब्बती धर्मए दलाई लामा और तिब्बती आजादी की ललक बनी हुई है। तब से चीनी नेता तिब्बती धर्म पर भीतर से कब्जा करने की नीति पर चल रहे हैं। इस नीति के तहत सभी अवतारी लामाओं की खोज और उनको गद्दी पर बिठाने का पूरा नियंत्रण चीनी कम्यनिस्ट पार्टी के नियंत्रण वाली बौद्ध कमेटियों के हाथ में है। 2008 में बीजिंग ओलिंपिक के समय तिब्बती जनता के विद्रोह में दिखी दलाई लामा की लोकप्रियता के बाद तो चीन सरकार के इस अभियान ने बहुत गति पकड़ ली। 2012 में शी चिनफिंग द्वारा सत्ता पर काबिज होने के बाद तो इस अभियान ने तिब्बत में सांस्कृतिकण्संहार का रूप ले लिया। दलाई लामा से जुड़े लोगों और संस्थाओं से फोन या इंटरनेट के जरिये संपर्क बनाने और यहां तक कि घर या अपने मोबाइल में दलाई लामा का फोटो रखने को भी राष्ट्रद्रोह मानते हुए कम से कम सात साल की जेल सजा का प्रविधान है।

तिब्बती बौद्ध धर्म को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति आस्थावान बनाने की चिनफिंग की घोषणा के बाद तो अधिकांश तिब्बती इलाकों से ऐसी हर मूर्ति को नष्ट किया जा चुका है जो गांव या शहर के घरों से ऊंची दिखने वाली थी। कम्युनिस्ट राष्ट्रवाद के नए अभियान के तहत तिब्बती परिवारों से पांच साल से बड़े लाखों बच्चों को जबरन अलग करके उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी के ऐसे हास्टलण्स्कूलों में डाल दिया गया जहां न केवल तिब्बती भाषा बोलने पढ़ने पर पाबंदी बल्कि माताण्पिता से मिलने की सीमित अनुमति भी महीनों बाद मिलती है। इस दमनकारी अभियान से चिनफिंग और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी को पूरी उम्मीद है कि तिब्बतियों की अगली पीढ़ी केवल शक्ल से तिब्बती होगी दिल दिमाग से पूरी तरह चीनी होगी। चिनफिंग का अगला निशाना दलाई लामा के अगले अवतार की खोज पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का नियंत्रण स्थापित करना है जिससे तिब्बती जनता पर वर्तमान दलाई लामा की मृत्यु के बाद उसके सरकारी दलाई लामा का नियंत्रण हो लेकिन यूरोपीय संघ अमेरिकी सरकार और मानवाधिकार संगठनों के विरोध ने चीन की राह में रोड़े अटका दिए हैं।चीन के भीतर चीनी सेना कम्युनिस्ट पार्टी और व्यापारी वर्ग में चिनफिंग के खिलाफ बढ़ते जा रहे विरोध की खबरों ने पहले से ही चीनी राष्ट्रपति के लिए चिंता पैदा की हुई है। दलाई लामा की इस घोषणा ने भी चिनफिंग के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है कि वह 130 साल की उम्र तक जिएंगे। अब दुनिया की रुचि यह देखने में है कि पहले दलाई लामा इस दुनिया से जाएंगे या चीन से कम्युनिस्ट शासन की विदाई होगी।

Vijay Kranti is a senior media professional of Kashmir origin. With over 50 years of experience in Print Media, TV, Radio, Photography, Media Education and Corporate Communications, he has been on the staff of some leading media groups which include India Today, BBC WORLD TV, Deutsche Welle (German Radio), Radio Voice of America, Aaj Tak TV, Zee News and DD News. As a journalist, his main subjects of specialization are Tibet, China and Jammu & Kashmir. He has written over a dozen books including ‘DALAI LAMA SPEAKS’, his famous coffee table book on the Dalai Lama, and his Hindi style book for the Discovery Channel. He is a recipient of the coveted K.K. Birla Foundation Fellowship in journalism for his work on Tibet. His latest comic book “DALAI LAMA – THE SOLDIER OF PEACE” has been published in English, Tibetan, Hindi and Spanish.

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