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भारतीय संविधान लोकतंत्र का ‘पवित्र’ ग्रंथ 

मनोज वर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

नई दिल्ली । भारतीय संविधान भारत का सर्वोच्च कानून है। यह एक लिखित दस्तावेज है जो सरकार और उसके संगठनों के मौलिक बुनियादी संहिता, संरचना, प्रक्रियाओं, शक्तियों और कर्तव्यों और नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों का निर्धारण करने वाले ढांचे को निर्धारित करता है। भारतीय संविधान वह पवित्र ग्रंथ है, जिससे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र संचालित होता है। इसे 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत किया गया था और यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इसको अंगीकृत किये जाने के समय, संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं और इसमें लगभग 145,000 शब्द थे, जिससे यह अब तक का अंगीकृत किया जाने वाला सबसे लंबा राष्ट्रीय संविधान बन गया। संविधान के प्रत्येक अनुच्छेद पर संविधान सभा के सदस्यों द्वारा बहस की गई, जिनकी संविधान के निर्माण के लिए 2 वर्ष और 11 महीने की अवधि में 11 सत्रों में और 167 दिनों के दौरान बैठक हुई। संविधान की प्रस्तावना भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है और अपने नागरिकों को न्याय, समानता और स्वतंत्रता का आश्वासन देती है और बंधुत्व को बढ़ावा देने का प्रयास करती है।

संविधान सरकार के एक संसदीय स्वरूप का प्रावधान करता है जो कुछ एकात्मक विशेषताओं के साथ संरचना में संघीय है। संघ की कार्यकारिणी का संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति होता है । भारत के संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, संघ की संसद की परिषद में राष्ट्रपति और दो सदन होते हैं ,जिन्हें कॉउंसिल ऑफ स्टेट्स (राज्य सभा) और हॉउस ऑफ द पीपल (लोकसभा) के रूप में जाना जाता है। संविधान के अनुच्छेद 74 (1) में प्रावधान है कि राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधान मंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में ऐसी सलाह के अनसार कार्य करेगा। इस प्रकार वास्तविक कार्यकारी शक्ति प्रधान मंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद में निहित होती है । डॉ भीम राव अम्बेडकर को भारतीय संविधान का मुख्य रचनाकार माना जाता है। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति बने। यह विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। भारत का संविधान न तो मुद्रित है और न ही टंकित है। यह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हस्तलिखित और सुलेखित है। इसे श्री प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा द्वारा हस्तलिखित किया गया था और उनके द्वारा देहरादून में प्रकाशित किया गया था। प्रत्येक पृष्ठ को शांतिनिकेतन के कलाकारों द्वारा सजाया गया, जिनमें बेहर राममनोहर सिन्हा और नंदला बोस शामिल हैं। अंतिम प्रारूप को पूरा करने में दो वर्ष, 11 महीने और 18 दिन लगे। वर्तमान में, इसमें 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं। आज की तिथि तक, संविधान में 105 बार संशोधन किया जा चुका है।

भारत के संविधान का स्वरूप गणतंत्रीय तथा ढांचा संघीय है और उसमें संसदीय प्रणाली के प्रमुख तत्व विद्यमान हैं । इसमें संघ के लिये एक संसद का प्रावधान है जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन अर्थात् राज्य सभा ( काउंसिल ऑफ स्टेट्स ) और लोक सभा ( हाउस ऑफ दी पीपल ) सम्मिलित हैं ; इसमें संघ की कार्यपालिका का भी प्रावधान है जो संसद के दोनों सदनों के सदस्यों में से सदस्य लेकर बनती है और वह सामूहिक रूप से लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है , इस प्रकार संघ की कार्यपालिका और संसद के बीच घनिष्ठ संबंध सुनिश्चित हो जाता है ; इसमें यह भी प्रावधान है कि एक राज्याध्यक्ष होगा जिसे भारत का राष्ट्रपति कहा जाएगा और वह केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की सहायता तथा सलाह से काम करेगा ; भारतीय संविधान में अनेक राज्यों का प्रावधान है जिनकी कार्यपालिकाओं और राज्य विधानमंडलों के बारे में वैसे ही मूल उपबन्ध हैं जैसे कि संघ के बारे में हैं  संविधान में विधि सम्मत शासन की व्यवस्था है तथा इसमें एक स्वतंत्र न्यायपालिका की और एक स्थायी सिविल सेवा की व्यवस्था है । भारत की संसद प्रभुसत्ता सम्पन्न निकाय नहीं है , यह एक लिखित संविधान की सीमाओं के अन्तर्गत कार्य करती है। इसके विधायी प्राधिकार पर दो प्रकार की सीमाएं हैं , एक तो यह कि संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा किया गया है और दूसरी यह कि संविधान में न्याय मौलिक अधिकारों का समावेश है तथा न्यायिक पुनरीक्षण का प्रावधान है जिसका अर्थ यह है कि संसद द्वारा पारित सभी विधियां अनिवार्यतः संविधान के उपबंधों के अनुसार होनी चाहिए और उनकी संवैधानिकता की जांच एक स्वतंत्र न्यायपालिका द्वारा की जा सकती है । इन सब उपबंधों से संसद के प्राधिकार तथा अधिकार क्षेत्र के स्वरूप तथा विस्तार का पता चलता है । भारत की सबसे बड़ी कानून बनाने वाली सभा संसद है, जिसमें राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा सम्मिलित हैं। एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर नामक वास्तुकारों ने संसद भवन की रूपरेखा तैयार की थी। संसद भवन के निर्माण हेतु शिलान्यास 12 फरवरी, 1921 को किया गया था। इसका निर्माण कार्य छह वर्ष बाद 18 जनवरी 1927 को पूरा हुआ था। संसद भवन का उद्घाटन तत्कालीन भारतीय वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया था। संसद परिसर का क्षेत्रफल लगभग 6 एकड़ है। संसद में प्रवेश के लिए 12 दरवाजे हैं। केन्द्रीय कक्ष संसद भवन के बीच में है। केन्द्रीय कक्ष में ही 15 अगस्त, 1947 को भारतीयों को ब्रिटिश शासन का हस्तांतरण किया गया था।

भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार एवं मौलिक कर्तव्य दोनों एक सिक्के के दो पहलू है और किसी भी समाज के संचालन के लिए इन दोनों की पालना करना अनिवार्य है। हमें अपने मौलिक अधिकारों से पहले अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। संविधान में 11 मौलिक कर्तव्यों का वर्णन किया गया है। देश के कानून की जानकारी आम आदमी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है तथा कानून की यह जानकारी देश के संविधान में मौजूद है। किसी भी लोकतांत्रिक देश की संवैधानिक व्यवस्था में नागरिकों और व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास के लिये कुछ मूलभूत अधिकारों की व्यवस्था की गई है। स्वतंत्रता से पूर्व औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय लोगों के साथ किया गया अमानवीय व्यवहार भारत में जातिगत व्यवस्था के अंतर्गत व्याप्त भेदभाव तथा स्वतंत्रता के दौरान होने वाले धार्मिक दंगों ने मानवीय गरिमा को छिन्न भिन्न कर दिया था। प्रत्येक व्यक्ति एक.दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखने लगा था। ऐसी स्थिति में संविधान निर्माताओं के समक्ष देश की एकता अखंडता मानवीय गरिमा को स्थापित करने तथा लोगों में परस्पर विश्वास बहाल करने की चुनौती थी। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए संविधान निर्माताओं ने सार्वभौमिक अधिकारों की व्यवस्था की। संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक उपलब्ध अधिकारों को मूल अधिकारों की संज्ञा दी गई।संविधान सभा में डॉ. बीआर अंबेडकर के शब्दों को याद रखना हमेशा महत्वपूर्ण है कि संविधान की मूल इकाई व्यक्ति ही है। कर्तव्यों की व्याख्या और इसके इर्द-गिर्द होने वाली बहस में सत्ताधारी लोगों के कर्तव्यों को भी शामिल किया जाना चाहिए। सत्ताधारी लोगों को इसका इस्तेमाल उन लोगों का शोषण करने के लिए नहीं करना चाहिए, जिनसे वे सत्ता प्राप्त करते हैं। संविधान द्वारा सभी को मानवता, सम्मान, समानता और स्वतंत्रता की पूर्ण गारंटी दिए जाने के बाद ही हम उनसे अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कह सकते हैं। संविधान द्वारा सभी के लिए मानवता, सम्मान, समानता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के बाद ही ‘कर्तव्यों का पालन’ करने का दायित्व नागरिकों पर डाला जाना चाहिए। 

स्वतंत्रता का अधिकार : स्वतंत्रता का अधिकार भारत के नागरिकों को कुछ स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है, जैसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सभा की स्वतंत्रता, संघ की स्वतंत्रता, आंदोलन की स्वतंत्रता और निवास की स्वतंत्रता। इस अधिकार की गारंटी संविधान के अनुच्छेद 19-22 के तहत दी गई है. यह अधिकार यह सुनिश्चित करने में मौलिक है कि नागरिक अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं में राज्य की अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए उचित प्रतिबंधों के साथ संतुलित स्वतंत्रता का आनंद लें। शोषण के विरुद्ध अधिकार :शोषण के विरुद्ध अधिकार तस्करी, जबरन श्रम और शोषण के अन्य रूपों पर रोक लगाता है. संविधान के अनुच्छेद 23-24 के तहत इसकी गारंटी है. सभी प्रकार की मानव तस्करी और बाल श्रम पर रोक लगाते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि कोई भी नागरिक शोषण और जबरन श्रम का शिकार न हो. बाल श्रम और मानव तस्करी जैसे सामाजिक मुद्दों से निपटने में यह अधिकार महत्वपूर्ण है।  धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार : धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार है. इस अधिकार की गारंटी संविधान के अनुच्छेद 25-28 के तहत दी गई है. अधिकारों का यह समूह भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में स्थापित करता है, जहां राज्य किसी विशेष धर्म का समर्थन नहीं करता है और पूजा की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार : भारत का संविधान भारत के नागरिकों को कुछ सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की गारंटी देता है. इसमें अपनी संस्कृति को संरक्षित करने और बढ़ावा देने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और भाषाई और अल्पसंख्यक अधिकारों का अधिकार शामिल है. इन अधिकारों की गारंटी संविधान के अनुच्छेद 29-30 के तहत दी गई है. ये अधिकार भारत की सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए मौलिक हैं कि अल्पसंख्यक समूह अपनी अनूठी विरासत और शैक्षिक प्रथाओं को संरक्षित और विकसित कर सकें। संवैधानिक उपचारों का अधिकार: संवैधानिक उपचारों का अधिकार भारतीय संविधान में निहित सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है. यह नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए एक तंत्र प्रदान करता है. यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत गारंटीकृत है. यह नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में सीधे सर्वोच्च न्यायालय से संपर्क करने का अधिकार देता है. यह अधिकार मौलिक अधिकारों की सुरक्षा और प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है, जो उन्हें न केवल घोषणात्मक बनाता है बल्कि कानून की अदालतों में लागू करने योग्य भी बनाता है। 

किसी संसदीय लोकतंत्र की सफलता में इसका सर्वाधिक महत्व है।हमारा देश न केवल सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में उभरा है, बल्कि यह प्रत्येक समाज के अधिकारों के संरक्षण की गारंटी के रूप में कार्यरत संविधान सहित, एक फूलती-फलती संसदीय प्रणाली के साथ एक सशक्त, बहुलवादी संस्कृति के सुन्‍दर प्रतीक के रूप में भी उभरा है।हम आज इस देश में खुली हवा में सांस ले रहे हैं तो इसके लिए देश के लाखों लोगों ने कुर्बानी दी है। अंग्रेजों से स्वतंत्रता हासिल की और देश नई दिशा देने के लिए कदम बढ़ाए। किसी भी देश के लिए उसका संविधान उस देश को चलाने का एक मूल मंत्र होता है। वो देश किस तरह की सरकार काम करेगी, देश के नागरिकों के क्या अधिकार होगें ये तमाम बातें देश का संविधान तय करता है। हमारे देश का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इस संविधान ने हमे तमाम अधिकार दिए हैं। जिनका हम खुलकर इस्तेमाल करते हैं। लेकिन हम सभी जानते हैं कि अगर हम अधिकारों का निर्वाह करना चाहते हैं तो इसके लिए हमारे कुछ कर्तव्य भी बनते हैं जिन्हें हमें निभाना चाहिए। अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सन 1976 से पहले हमारे यहां संविधान में सिर्फ मौलिक अधिकारों का ही उल्लेख था लेकिन 1976 में सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर संविधान के 42वें संशोधन के जरिए मौलिक कर्तव्य को संविधान में जोड़ा गया। इसे भाग 4(क )में अनुच्छेद 51(क)के तहत रखा गया। हमने मौलिक कर्तव्य पूर्व सोवियत संघ के संविधान से लिए और इन्हें भारत के अनुरूप संविधान में जगह दी।


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