जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकियों ने बारूद से भरी जीप लेकर राम मंदिर पर धमाका किया था……….27 दिसंबर 2023 को अयोध्या में राम मंदिर को बम से उड़ाने की धमकी दी गई. यूपी के डीजीपी कार्यालय की तरफ से जानकारी दी गई कि सीएम योगी, STF चीफ अमिताभ यश और भारतीय किसान मंच के देवेंद्र नाथ तिवारी के साथ-साथ राम मंदिर को भी बम से उड़ाने की धमकी दी गई है. बताया गया कि जुबैर खान नाम की ईमेल ID से धमकी भरा मेल आया है. हालांकि, जांच में ID फर्जी निकली. और पुलिस ने धमकी देने के आरोप में ताहर सिंह और ओम प्रकाश मिश्र नाम के आरोपियों को गिरफ्तार किया.
आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद प्रशासन और पुलिस ने चैन की सांस ली. क्योंकि राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर साल 2005 जैसी घटना किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जा सकती. 5 जुलाई, 2005 को राम जन्म भूमि पर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने हमला किया था. जिसने देश की सुरक्षा व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया था.2005 अयोध्या आतंकी हमला
राम जन्म भूमि पर हुए इस आतंकी हमले को अंजाम दिया था जैश के पांच आतंकियों ने. ये आतंकी एक सफेद जीप में सवार होकर आए थे. दहशतगर्दों ने हमले के लिए सुबह का वक्त चुना. मंदिर का पूरा परिसर लोहे की मोटी छड़ों से घिरा हुआ था. गेट से जाते तो पकड़े जाते, इसलिए इस सुरक्षा घेरे को भेदने के लिए आतंकियों ने RDX से भरी जीप का इस्तेमाल किया. इंडिया टुडे मैग्जीन के जुलाई, 2005 के एडिशन के मुताबिक आतंकी जीप में सवार होकर आए. लेकिन मंदिर पहुंचने से पहले ही उतर गए. एक आंतकी जीप को लोहे की छड़ों की बाड़ तक ले गए. उसने आत्मघाती हमले में जीप में भरे बारूद को उड़ा दिया. और एक बड़ा धमाका हुआ. इस धमाके में एक आम नागरिक की भी जान चली गई.
इस धमाके के साथ ही अंदर पहुंचने का रास्ता बन गया. हालांकि, इसके बाद भी एक दीवार थी. जिसके अंदर के परिसर में गर्भगृह था. आंतकी मंदिर से महज 50 मीटर की दूरी पर पहुंच गए थे. तीन आतंकियों ने अंदर की दीवार पर चढ़कर मंदिर पर हथगोले फेंके और रॉकेट दागे. लेकिन उनके ये मंसूबे कामयाब नहीं हो पाए. मंदिर पर हथगोले फेंकने के बाद उन्होंने मंदिर की सुरक्षा में तैनात जवानों पर गोलियां चलानी शुरू कर दी. तुरंत जवाबी कार्रवाई हुई. दोनों तरह से काफी देर तक गोलीबारी हुई. एक-एक करके सारे आतंकी मारे गए. एक आतंकी मानव बम बनकर आया था. गोलीबारी के दौरान उसके चीथड़े उड़ गए. इस हमले में तीन सुरक्षाबल घायल हुए.इस हमले में आतंकियों के मंसूबे कामयाब नहीं हो पाए. मंदिर पर जो ग्रेनेड फेंके गए, वो फटे नहीं. आतंकियों के पास से 15 जिंदा हथगोले, पांच एके-47 राइफल, दो 9mm की पिस्तौल और रॉकेट लॉन्चर बरामद किए गए. इतना गोला-बारूद लेकर जब आतंकियों ने हमला किया, उस वक्त मंदिर परिसर में CRPF के 300 जवान, PAC के 600 जवान और यूपी पुलिस के 24 जवान तैनात थे.इस हमले के केस में विशेष अदालत ने शकील अहमद, मोहम्मद नसीम, आसिफ इकबाल और डॉक्टर इरफान को 2019 में उम्र कैद की सजा सुनाई. इनमें से इरफान यूपी के सहारनपुर का रहने वाला है. जबकि बाकी तीनों दोषी जम्मू-कश्मीर के पुंछ के रहने वाले हैं.
अयोध्या आतंकी हमले में चार दोषियों को आजीवन कारावास, एक आरोपी बरी
अयोध्या में 2005 में हुए आतंकी हमले के मामले में विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी) दिनेश चंद्र ने चार दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने साक्ष्य के अभाव में एक आरोपी मोहम्मद अजीज को दोषमुक्त करार दिया। यह फैसला नैनी सेंट्रल जेल में सुनाया गया। सरकारी वकील गुलाब चंद्र अग्रहरि ने बताया कि डॉक्टर इरफान, शकील अहमद, आसिफ इकबाल और मोहम्मद नसीम को मंगलवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सभी पर 2,40,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया ।अग्रहरि ने बताया कि पांच जुलाई, 2005 को अयोध्या में हुए आतंकी हमले में नसीम ने पाकिस्तानी आतंकवादी कारी के कहने पर मोबाइल का सिम लिया था और अजीज ने सिम लेने के लिए दस्तावेजों का सत्यापन किया था। जिस वाहन (संख्या जेके 12-0267) से हमले के लिए हथियार लाए गए मोहम्मद शकील उसका मालिक था। इसके लिए 2,20,000 रुपये में कारी ने सौदा तय कराया था। अग्रहरि ने बताया कि शकील को यह रकम दे दी गई थी, लेकिन उसे यह कहा गया था कि गाड़ी आपके नाम पर ही रहेगी। इसी वाहन से 5 जून, 2005 को हथियार अलीगढ़ लाए गए थे । अलीगढ़ में हथियार रखने के बाद 7 जून, 2005 को वाहन जम्मू भेजा गया था। आतंकी हमले में आसिफ इकबाल की भूमिका के बारे में उन्होंने बताया कि वह मुख्य आरोपी था। आतंकी कारी ने नसीम द्वारा खरीदा गया सिम आसिफ इकबाल को दिया था। अग्रहरि ने बताया कि अयोध्या आतंकी हमले में सीआरपीएफ के साथ मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों में से एक की पहचान अरशद के रूप में हुई है। अभी तक इस मामले में 371 तारीखें लगीं और 63 लोगों की गवाही हुई।
क्या हुआ था 5 जुलाई 2005 को?
पांच जुलाई 2005 की सुबह रामनगरी अयोध्या भीषण बम धमाके से दहल उठी थी। रामजन्म भूमि परिसर में घुसने का प्रयास कर रहे पांच आतंकवादियों ने धमाका किया था। इसके बाद करीब डेढ़ घंटे तक अयोध्यावासी बमों के धमाकों और गोलियों की तड़ताड़हट के बीच सहमे रहे।पांच जुलाई को सुबह करीब सवा नौ बजे रामजन्म भूमि परिसर से ठीक पहले जैन मंदिर के पास बनी बैरिकेटिंग पर एक सफेद रंग की मार्शल जीप महिंद्रा इकोनॉमी आकर रुकी। इसमें सवार पांच लोग जीप के रुकते ही उसमें से कूदकर अलग-अलग दिशाओं में भागे। जैन मंदिर के पास तैनात 11 वीं वाहिनी पीएसी के दलनायक कृष्णचंद्र सिंह जब तक कुछ समझ पाते जीप में जोर का धमाका हुआ जिससे चारों ओर धुंआ छा गया। धमाके से लगभग दस मीटर बैरिकेटिंग उड़ गई थी। आतंकियों की ओर से सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाकर एके 47 राइफलों से गोलीबारी शुरू कर दी। आतंकी रॉकेट लांचर और ग्रेनेड का भी प्रयोग कर रहे थे। पांचों आतंकी अलग-अलग दिशा से मुख्य परिसर की ओर बढ़ रहे थे। पीएसी के जवानों ने उनकी चारों ओर से घेराबंदी शुरू कर दी। तब तक इनर कार्डेन में तैनात सीआरपीएफ की टुकड़ियों ने भी मोर्चा संभाल लिया था।सीआरपीएफ कंपनी कमांडर विजेरो टिनी और महिला कंपनी कमांडर संतोदेवी की टुकड़ी ने मुख्य परिसर को पूरी तरह से घेर लिया और जवाबी फायरिंग शुरू कर दी। इससे आतंकी मुख्य परिसर में नहीं घुस सके। इस बीच 33 वीं वाहिनी पीएसी ने जैन मंदिर के पास बने जनरेटर रूम के बगल वाले मकान पर चढ़कर आतंकियों पर फायरिंग शुरू कर दी। इस सब में करीब आधे घंटे बीत गए थे।अब तक फैजाबाद एसएसपी के साथ सिविल पुलिस भी मौके पर पहुंच चुकी थी। सिविल पुलिस ने सीता रसोई की ओर मोर्चा संभाल लिया। अब आतंकी चारों ओर से घिर चुके थे। करीब 11 बजे तक आतंकियों और सुरक्षाबल के बीच गोलियां चलती रहीं। थोड़ी देर बाद आतंकियों की ओर से फायरिंग बंद हो गई। इसके बावजूद सुरक्षाबलों ने एहतियात बरतते हुए करीब आधे घंटे इंतजार किया। जब आतंकियों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो पूरे इलाके को घेर का कॉम्बिंग शुरू कराई गई।कॉम्बिंग के दौरान इनर कार्डेन के पास सीमेंटेड रास्ते पर दो आतंकियों के शव पाए गए। दोनों की उम्र लगभग 30 वर्ष थी और उनके पास से एके 47 राफइलें, गोलियों, हैंडग्रेनेड और रॉकेट लांचर के अलावा चाइना मेड पिस्टल और कुरान बरामद की गई। दो आतंकियों के शव सीता रसोई के पश्चिमी हिस्से में झाड़ियों के बीच पाए गए। इनमें से एक आतंकी मानव बम बना था। उसने खुद को उड़ा लिया था। उसके शव के टुकड़े इधर उधर पड़े हुए जिससे उसके हुलिए और आयु का पता नहीं चल सका। इनके पास से भी रॉकेट लांचर, हैंड ग्रेनेड, एके 47 राइफल और बड़ी मात्रा में गोलियां तथा मैगजीन आदि बरामद हुई।पांचवें आतंकी का शव जनरेटर रूम के पास आउटर कार्डेन की ओर से जाने वाले रास्ते पर मिला। इसकी उम्र करीब 25 वर्ष थी। इसके पास से भी आत्याधुनिक राइफल, ग्रेनड और गोलियां बरामद हुई। इसके अलावा आतंकियों द्वारा इस्तेमाल किए गए मोबाइल हैंडसेट भी घटनास्थल से बरामद किए गए।
लेकिन वो कौन सी परिस्थियां थीं, जब सीआरपीएफ के 300 जवानों, पीएसी के 600 जवानों और प्रदेश पुलिस के 24 जवानों की चौकसी के अलावा लोहे की बाड़, मेटल डिक्टेटर और 13 चौकसी चौकियों को धता बताते हुए ये आतंकवादी एके 47 और हथगोलों से लैस होकर न केवल मंदिर परिसर में पहुंच गए, बल्कि हमला भी किया और मंदिर की सुरक्षा में तैनात फोर्स के साथ करीब डेढ़ घंटे तक गोली बारी करते रहे.
5 जुलाई, 2005. मंगलवार का दिन था. अयोध्या में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग मंगलवार के दिन को हनुमान और नरसिंह भगवान से जोड़ते हैं. वो मानते हैं कि मंगलवार को कुछ मुश्किल काम होते हैं. अयोध्या के लिए ये मंगलवार भी थोड़ा मुश्किल होने वाला था. सुबह के करीब सात बज रहे थे. अयोध्या में रेहान नाम के एक आदमी के पास सफेद रंग की मार्शल जीप थी. वो इसे किराए पर चलााता था. एक आदमी रेहान के पास पहुंचा और उससे जीप किराए पर ली. उस आदमी ने रेहान को वापस जाने को कह दिया और खुद जीप चलाने लगा. इस जीप में पांच और लोग सवार हो गए. जीप में सवार ये लोग सुबह के करीब 9.25 बजे रामलला मंदिर के पीछे दुराही कुंआ इलाके में दिगंबर जैन मंदिर के पास बाहरी घेरे तक जा पहुंचे. वहां पहुंचकर पांच लोग नीचे उतर गए, जबकि एक आदमी उसी जीप में बैठा रहा. सुबह 7 बजे से लेकर 9.25 के दौरान जो करीब ढाई घंटे का वक्त मिला था, उसमें इन लोगों ने जीप में आरडीएक्स भर दिया था. दिगंबर जैन मंदिर के पास जब पांच लोग उतर गए, तो जीप में बैठे छठे आदमी ने आरडीएक्स में धमाका कर दिया.इस धमाके में उस आदमी के साथ ही जीप के भी परखच्चे उड़ गए. मंदिर का बाहरी घेरा भी धमाके में टूट गया और उसमें आने-जाने का रास्ता बन गया. धमाके बाद धूल और धुंए का गुबार उठा, जिसकी आड़ में दो आतंकवादी धमाके से बने रास्ते से मंदिर के अंदर दाखिल हो गए. बाकी के तीन आतंकवादी जेनरेटर रूम की छत पर चढ़ गए, जहां से मंदिर का गर्भगृह करीब 50 मीटर की दूरी पर था. छत से ही आतंकवादियों ने हथगोले फेंके, जो फट नहीं पाए. अभी मंदिर की सुरक्षा में तैनात सीआरपीएफ के जवान कुछ समझ पाते, उससे पहले ही एके 47 से लैस आतंकवादियों ने फायरिंग शुरू कर दी.आतंकवादियों का जवाब सबसे पहले पीएसी ने दिया. 11वीं वाहिनी पीएसी के कमांडेंट कृष्ण चंद्र सिंह की टीम ने जवाबी फायरिंग शुरू कर दी. इसी बीच सीआरपीएफ के कंपनी कमांडर विेजेरो टिनी और महिला कमांडर संतोदेवी की टुकड़ी ने मंदिर परिसर को अपने कब्जे में ले लिया और जवाबी फायरिंग शुरू कर दी. करीब डेढ़ घंटे तक दोनों पक्षों के बीच गोलीबारी होती रही. जब फायरिंग रुकी, तो सुरक्षाबलों ने आधे घंटे तक इंतजार किया. जब आतंकवादियों की ओर से एक भी गोली नहीं चली तो सुरक्षाबलों के जवान उनके पास पहुंचे. देखा कि इस फायरिंग में पांचों आतंकवादी मारे गए हैं. इसके अलावा गोलियों की चपेट में आकर तीन स्थानीय नागरिक रमेश पांडेय, सुधा देवी और कृष्णस्वरूप भी मारे गए थे. इसके अलावा सात सुरक्षाकर्मियों को भी गोली लगी थी.सुरक्षाबलों को आतंकवादियों के पास से पांच एके-47 राइफलें, दो नाइन एमएम पिस्टर और एक रॉकेट लॉन्चर बरामद हुआ था. इसके अलावा आतंकवादियों के पास से नोकिया का एक मोबाइल भी बरामद हुआ था. सुरक्षाबलों ने इस मोबाइल को सर्विलांस पर लगाया और फिर वारदात की परत दर परत उघड़ती चली गई. हमले में मारे गए छह आतंकियों में से सिर्फ एक की शिनाख्त हुई थी, जिसका नाम था अरशद. बाकी के लोगों के नाम का पता नहीं चल सका.पता चला कि इस मोबाइल में कुल 11 सिमकार्ड इस्तेमाल किए गए हैं. इनमें से एक सिमकार्ड जम्मू के शहजान की दुकान से खरीदा गया था. शहजान ने बताया कि ये सिम लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर कारी ने खरीदा था. इसका वेरिफिकेशन अजीज ने किया था. कारी ने सिम आसिफ इकबाल उर्फ फारुख को दिया था. इसके बाद 28 जुलाई, 2005 को सुरक्षा बलों ने जम्मू से मो. नसीम, मो. अजीज, मो. शकील और आसिफ इकबाल को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ हुई तो पता चला कि अयोध्या में हथियार ले जाने के लिए एक टाटा सूमो गाड़ी का इस्तेमाल हुआ है. ये गाड़ी मोहम्मद शकील की थी, जिसे आसिफ इकबाल चलाता था. आसिफ इस गाड़ी को श्रीनगर ले गया था, जहां अदनान नाम के एक आतंकी ने इस गाड़ी में हथियार रखने की जगह बनाई थी. कुछ हथियार जम्मू से और कुछ हथियार पानीपत से इकट्ठा किए गए थे. इसके बाद मुश्ताक नाम के आदमी की मदद से ये हथियार अलीगढ़ लाकर रखे गए थे.
14 साल में पड़ी 371 तारीखें, सात जज बदले
5 जुलाई, 2005 को हमले के बाद फैजाबाद की जिला अदालत ने 19 अक्टूबर, 2006 को आरोप तय किए. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 8 दिसंबर, 2006 को आदेश दिया कि मामले की सुनवाई इलाहाबाद जिला अदालत में होगी. हमले के आरोप में फैजाबाद जिला जेल में बंद सभी पांच आरोपियों को भी इलाहाबाद के नैनी सेंट्रल जेल में भेज दिया गया. तब से अब तक अपर जिला और सत्र न्यायाधीश सीताराम निगम, विकास अहमद अंसारी, बीएम गुप्ता, अतुल कुमार गुप्ता, प्रेम नाथ, सुरेंद्र सिंह और दिनेश चंद्र ने सुनवाई की. आखिरकार 18 जून, 2019 को स्पेशल जज एससी-एसटी दिनेश कुमार ने चार आतंकियों को अयोध्या हमले का दोषी पाया और उम्रकैद की सजा दी.
किस आतंकी की क्या थी भूमिका?
स्पेशल जज ने आसिफ इकबाल उर्फ फारुख, इरफान, मो. नसीम और मो. शकील को उम्र कैद की सजा दी है. आरोप पत्र के मुताबिक- 1. आसिफ इकबाल उर्फ फारुख : अयोध्या हमले का मास्टरमाइंड है. लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी कारी के सीधे संपर्क में था. शकील की टाटा सूमो चलाता था. जम्मू, पानीपत और श्रीनगर से हथियारों का इंतजाम किया और टाटा सूमो में लादकर अलीगढ़ पहुंचाया.
2. डॉ. इरफान : रहने वाला सहारनपुर का है. दिल्ली में क्लीनीक चलाता था. हमले में शामिल आतंकियों को पनाह दी थी. हमले में मारे गए छह आतंकियों में से सिर्फ एक की शिनाख्त हुई थी, जिसका नाम था अरशद. अरशद का इरफान के यहां आना-जाना था. रामजन्मभूमि का पूरा नक्शा इरफान ने ही आतंकियों को दिया था. गिरफ्तारी के बाद इसके पास से एक मोबाइल बरामद हुआ था, जिससे इसने आतंकियों से मोबाइल पर बात की थी. आतंकियों ने जिस सिम कार्ड का इस्तेमाल किया था, उस सिम को इसके मोबाइल में भी लगाया गया था.3. मो. नसीम : नसीम ने अपने आइडेंटिटी कार्ड पर जम्मू में शहजाद की दुकान से सिम कार्ड खरीदा था. एके 47 की व्यवस्था करने ये पानीपत तक गया था. हथियारों को अलीगढ़ तक पहुंचाया था.
4. मोहम्मद शकील : इसी की टाटा सूमो से हथियार लाए गए थे. इसी गाड़ी से शकील आसिफ इकबाल के साथ कश्मीर के पूंछ मेंढर में अकबर के घर गया था, जहां उसे लश्कर आतंकी मिला था. पूरी वारदात की साजिश यहीं रची गई. कारी ने शकील को 2 लाख 20 हजार रुपये दिए. इसके बाद सूमो को लेकर श्रीनगर में अदनान के पास गया, जहां सूमो में हथियार रखने का बक्सा लगाया गया. शकील ने हथियारों को अलीगढ़ पहुंचाने में भी मदद की थी.
मोहम्मद अजीज, जिसे कोर्ट ने बरी कर दियापुलिस की चार्जशीट के मुताबिक मोहम्मद अजीज ने आतंकवादियों को सीम खरीदने में मदद की थी. लेकिन पुलिस इसके बारे में साक्ष्य जुटाने में नाकाम रही. इसे देखते हुए कोर्ट ने अजीज को बरी कर दिया.
अब 18 साल के बाद केस में फैसला आ गया है. चार दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि बरी किए गए अजीज के खिलाफ सरकार हाई कोर्ट में अपील करेगी.
आतंकियों ने की थी राम मंदिर परिसर को उड़ाने की कोशिश
अयोध्या के लिए वह मनहूस तारीख 5 जुलाई 2005 था। जब उस समय विवादित रहे परिसर में विराजमान रामलला के टेंट के अस्थाई मंदिर पर आतंकियों ने हमला किया था। परिसर के पास पहुंचते ही आतंकियों के मार्शल जीप में धमका हुआ और परिसर की बैरीकेडिंग पूरी तरह से टूट गई थी। और फिर 5 आतंकी अंदर दाखिल हुए परिसर में गोलियों चलने की गूंज सुनाई देने लगी। जिसमें दो आतंकी का मकसद सिर्फ रामलला के टेंट को उडाना था। और तीन अन्य साथियों का मकसद विवादित स्थल के बगल मौजूद सीता रसोई में प्रवेश करना था। क्यूँ की सीता रसोई एक बड़ी इमारत थी और ऊँचाई पर भी थी वहाँ से उन्हें पूरा परिसर दिखाई देता और उस जगह पर वो सुरक्षित भी रहते इसीलिए वो सीधे सीता रसोई की तरफ बढ़ रहे थे उनके मकसद इस आतंकी हमले को लम्बे समय तक चलाते रहना और ज्यादा से ज्यादा नुकसान करना था। लेकिन सभी आतंकी मारे गए।
कड़ी सुरक्षा में राम जन्मभूमि का राम कोट क्षेत्र
राम जन्मभूमि पर 5 जुलाई 2005 में आतंकी हमले के बाद राम कोट क्षेत्र को रेड ज़ोन एरिया घोषित करते हुए सभी गलियों व चौराहों पर बैरिंग केटिंग लगा दिया गया था। आज भी इन क्षेत्रों में कड़ी सुरक्षा रहती है और बिना परिमिशन के कोई भी वाहन इस क्षेत्र में दाखिल नही हो सकता है। आज आतंकी घटना की 17वीं बरसी के लेकर राम जन्मभूमि परिसर की सुरक्षा घेरा को सख्त कर दिया गया है। चारों तरफ लगे शीशी टीवी कैमरे से संदिग्धों पर नजर रखी जा रही है। बिना पहचान पत्र के प्रवेश नही दिया जा रहा है। लेकिन इस सुरक्षा के बीच श्रद्धालुओं को दर्शन करने में किसी प्रकार की परेशानी न हो इसका भी ध्यान रखा जा रहा है।
अयोध्या की सुरक्षा के लिए खास दिन है 5 जुलाई
विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने कहा कि 5 जुलाई 2005 किस तिथि को कोई भूल नहीं सकता उस दिन की घटना हिंदू समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है अयोध्या के पूज्य संतों के प्रताप हनुमान जी और राम लला के आशीर्वाद से इस कारण आतंकी हमेशा के लिए यहां आकर समाप्त हो गए या हम सबके लिए सौभाग्य का दिन था और एक तरह से यह दुर्भाग्य का भी दिन था क्योंकि आतंकी सुरक्षा चूक के कारण अयोध्या में प्रवेश कर गए इसको अब स्मरण नहीं करना चाहिए जो भी हुआ वह पूर्व में हो चुका है आज हम सब रामलला और हनुमान जी के चरणों में हैं और संतों के आशीर्वाद से सुरक्षित है इसी तरह से संतों का आशीर्वाद और हनुमान जी का सुरक्षा कवच हम लोगों को प्राप्त होता रहे अयोध्या समाज सुरक्षित रहे भव्य मंदिर का निर्माण होता रहे। यही हमारी प्रभु से प्रार्थना है
भक्त बनकर आए आतंकी, रामलला से मात्र 50 मीटर की दूरी पर मचाई तबाही:
जुलाई 5, 2005 की सुबह थी, जिसने पूरे भारत में भय का माहौल पैदा कर दिया था। आतंकियों ने सोच-समझ कर अयोध्या को निशाना बनाया था, क्योंकि उन्हें पता था कि ये वो जगह है, जहाँ से दुनिया भर के हिंदुओं की आस्था तो जुड़ी ही हुई है, साथ ही यहाँ एक पत्ता भी खड़के तो ये पूरे देश मे बड़ी ख़बर बनती है। शायद ये हमला एक चेतावनी था, इससे भी बड़ी आतंकी कार्रवाई का।2 स्थानीय लोगों की जान चली गई थी और सीआरपीएफ के 7 जवान घायल हो गए थे। 2005 में प्रयागराज की एक स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में 4 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। साथ ही उन सभी पर 2.4 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया था। दोषी आतंकियों में डॉक्टर इरफ़ान, शकील अहमद, आसिफ इकबाल और मोहम्मद नसीम शामिल थे। वहीं मोहम्मद अजीज के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला, वो बच निकला।इस मामले में उस जीप के ड्राइवर को भी गिरफ्तार किया गया था, जिसने उन आतंकियों को मंदिर तक पहुँचाया था। ड्राइवर रेहान आलम कुछ दूर पहले ही जीप से उतर गया था। उसने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि आतंकियों ने कहा था कि वो श्रद्धालु हैं और रामलला के दर्शन करना चाहते हैं। दरअसल, वहाँ आतंकी दो गाड़ियों से पहुँचे थे, जिनमें से एक में आत्मघाती हमलावर सवार था। उसने ही गाड़ी को ब्लास्ट किया था।इस मामले में स्पेशल कोर्ट को फैसला सुनाने में 14 साल लग गए थे। कुल 371 सुनवाइयों के दौरान 63 गवाहों के बयान दर्ज किए गए, तब जाकर इस मामले में सज़ा मिली। जहाँ इरफ़ान यूपी के ही सहारनपुर का था, बाकी आरोपित जम्मू-कश्मीर के पूँछ के रहने वाले थे। इनके तार खूँखार आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए थे। आज जब राम मंदिर का सपना साकार होने जा रहा है, हमें इस घटना को याद करने की ज़रूरत है।