नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल और नेशनल एंटी-डोपिंग संशोधन बिल, 2025 लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी पास हो गया। केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने यह बिल पेश किया, जिसका उद्देश्य भारत में खेल प्रशासन को मजबूत बनाना है।इससे पहले सोमवार को लोकसभा में खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने इसे आजादी के बाद से भारतीय खेलों में सबसे बड़ा सुधार बताया था। नेशनल स्पोर्ट्स बिल को लाने की शुरुआत 1975 से हुई थी। लेकिन हर बार राजनीतिक कारणों के चलते यह बिल कभी संसद नहीं जा पाया था।
बिल पास होने पर मनसुख मांडविया ने कहा-यह आजादी के बाद का सबसे बड़ा खेल सुधार है। यह बिल खेल संघों में जवाबदेही, न्याय और बेहतर गवर्नेंस सुनिश्चित करेगा।”उन्होंने यह भी कहा कि यह बिल भारत के खेल तंत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन अफसोस है कि विपक्ष इसमें शामिल नहीं हुआ।
सुधार की दिशा में ऐतिहासिक कदम
यह विधेयक खेल संघों में अध्यक्ष, महासचिव और कोषाध्यक्ष के पद के लिए लगातार तीन कार्यकाल की अवधि को कुल 12 वर्ष तक सीमित करता है। आयु सीमा 70 वर्ष रखी गई है जो संबंधित खेल के अंतरराष्ट्रीय चार्टर और नियमों द्वारा अनुमति मिलने पर नामांकन के समय 75 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।
किसी भी खेल संस्था की कार्यकारी समिति की अधिकतम सदस्य संख्या 15 रखी गई है। समिति में कम से कम दो खिलाड़ी और चार महिलाओं को शामिल करना अनिवार्य होगा। यह प्रविधान खेल प्रशासन में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने और निर्णय लेने की प्रक्रिया में खिलाड़ियों को एक प्रमुख हितधारक बनाने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के अनुरूप है।
राष्ट्रीय खेल बोर्ड
इस विधेयक की सबसे चर्चित विशेषता राष्ट्रीय खेल बोर्ड (एनएसबी) है जिसके पास सभी राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) को मान्यता देने या निलंबित करने की सर्वोच्च शक्तियां होंगी। एनएसबी में एक अध्यक्ष होगा और इसके सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। ये नियुक्तियां एक खोज व चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाएंगी जिसके अध्यक्ष कैबिनेट सचिव या खेल सचिव होंगे।
अन्य सदस्यों में भारतीय खेल प्राधिकरण के महानिदेशक, किसी राष्ट्रीय खेल संस्था के अध्यक्ष, महासचिव या कोषाध्यक्ष रह चुके दो खेल प्रशासक और द्रोणाचार्य, खेल रत्न या अर्जुन पुरस्कार विजेता एक प्रतिष्ठित खिलाड़ी शामिल होंगे। बोर्ड चुनाव में अनियमितताओं, वित्तीय गड़बडि़यों या वार्षिक लेखा-परीक्षा रिपोर्ट प्रकाशित न करने पर संबंधित महासंघों की मान्यता रद कर सकता है।
राष्ट्रीय खेल पंचाट
देशभर में चयन और चुनाव विवादों से जुड़े 350 से अधिक मामलों के समाधान के लिए राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण का गठन होगा। इसमें अध्यक्ष के रूप में सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश या किसी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त किया जाएगा। इसके आदेश केवल सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जा सकेंगे, जिससे मामलों का निपटारा तेज और स्थायी होगा। अपील 30 दिन के भीतर दाखिल करनी होगी, हालांकि सुप्रीम कोर्ट समय सीमा के बाद भी सुनवाई करने का अधिकार रखेगा।
राष्ट्रीय खेल चुनाव पैनल
इसकी नियुक्ति भी केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय खेल बोर्ड की सिफारिश पर की जाएगी। यह पैनल भारतीय निर्वाचन आयोग या राज्य निर्वाचन आयोग के सेवानिवृत्त सदस्यों या राज्यों के सेवानिवृत्त मुख्य निर्वाचन अधिकारियों या उप निर्वाचन आयुक्तों से बना होगा जिनके पास ‘पर्याप्त अनुभव’ हो। यह पैनल खेल संघों की कार्यकारी समितियों और खिलाड़ी समितियों के स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की देखरेख के लिए ‘निर्वाचन अधिकारी’ के रूप में कार्य करेगा। बोर्ड राष्ट्रीय खेल चुनाव पैनल का एक रोस्टर बनाएगा।
सूचना का अधिकार
सरकारी वित्त पोषण और समर्थन पर निर्भर सभी मान्यता प्राप्त खेल संगठन अपने कार्यों, कर्तव्यों और शक्तियों के प्रयोग के संबंध में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत आएंगे। बीसीसीआई मंत्रालय के वित्त पोषण और समर्थन पर निर्भर नहीं है, लेकिन वह भी इसके दायरे में आएगा। उसे एनएसबी के साथ एनएसएफ के रूप में खुद को पंजीकृत करना होगा क्योंकि क्रिकेट 2028 के ओलंपिक खेलों में टी-20 प्रारूप में एक ओंलपिक खेल के रूप में पदार्पण करने वाला है।
सरकार के विशेष अधिकार
कोई भी खेल संगठन जो भारत या भारतीय या राष्ट्रीय शब्द या किसी भी राष्ट्रीय प्रतीक या चिह्न का उपयोग करना चाहता है उसे केंद्र सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा। केंद्र सरकार यदि जनहित में आवश्यक समझे तो उसे विधेयक के किसी भी प्रावधान में ‘ढील’ देने का अधिकार होगा। इसके अतिरिक्त सरकार इस विधेयक के प्रावधानों के ‘कुशल प्रशासन’ के लिए राष्ट्रीय खेल बोर्ड या किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को भी ऐसे निर्देश दे सकती है।
BCCI पर RTI लागू नहीं होगा BCCI अब भी RTI के दायरे में नहीं आएगा। खेल मंत्रालय ने नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल में संशोधन किया है। इसके अनुसार, अब केवल उन्हीं खेल संगठनों को इसके दायरे में लाया गया है, जो सरकारी अनुदान और सहायता लेते हैं।
BCCI खेल मंत्रालय से कोई अनुदान नहीं लेता है। हालांकि विभिन्न संगठन कई बार BCCI को RTI (सूचना का अधिकार) के दायरे में लाने की मांग करते रहे हैं।
23 जुलाई को बिल पेश किया था खेल मंत्री मनसुख मंडाविया ने 23 जुलाई को लोकसभा में नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल, 2025 पेश किया था। इस बिल में खेलों के विकास के लिए नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बॉडी, नेशनल स्पोर्ट्स बोर्ड, नेशनल खेल इलेक्शन पैनल और नेशनल स्पोर्ट्स ट्रिब्यूनल बनाने के प्रावधान हैं। संसद में इस बिल को GPC में भेजने की मांग भी उठी है।
1975 से शुरुआत हुई नेशनल स्पोर्ट्स बिल को लाने की शुरुआत 1975 में हुई थी। लेकिन राजनीतिक कारणों से यह कभी संसद तक नहीं पहुंच सका था। 2011 में नेशनल स्पोर्ट्स कोड बना, जिसे बाद में बिल में बदलने की कोशिश हुई, लेकिन वह भी अटक गया। अब 2036 ओलिंपिक की बोली लगाने की तैयारी के तहत खेल प्रबंधन में पारदर्शिता और अंतरराष्ट्रीय स्तर की व्यवस्था लाने के लिए इसे लाया गया है।
नेशनल स्पोर्ट्स बिल का उद्देश्य
नेशनल एंटी-डोपिंग बिल क्या हैं नेशनल एंटी-डोपिंग (संशोधन) बिल, 2025 एक ऐसा कानून है जो भारत में डोपिंग रोकने की व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक बनाने के लिए लाया गया है। इसका मुख्य मकसद यह सुनिश्चित करना है कि भारत की नेशनल एंटी-डोपिंग एजेंसी (NADA) पूरी तरह स्वतंत्र तरीके से काम करे और उस पर सरकार का सीधा दखल न हो।
क्यों लाया गया?
- 2022 में नेशनल एंटी-डोपिंग एक्ट पास हुआ था, लेकिन WADA (वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी) ने इसमें कुछ आपत्तियां जताईं।
- WADA को यह आपत्ति थी कि भारत में बनाए गए नेशनल बोर्ड फॉर एंटी-डोपिंग इन स्पोर्ट्स को NADA पर निगरानी और निर्देश देने का अधिकार था, जिसे उन्होंने “सरकारी हस्तक्षेप” माना।
- अगर WADA के नियमों का पालन नहीं होता, तो भारत को अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में प्रतिबंध झेलना पड़ सकता था।
2025 में क्या बदलाव हुए?
- बोर्ड (नेशनल बोर्ड फॉर एंटी-डोपिंग) बना रहेगा, लेकिन अब उसके पास NADA पर कोई निगरानी या निर्देश देने का अधिकार नहीं होगा।
- NADA को ऑपरेशनल इंडिपेंडेंस (संचालन की पूरी स्वतंत्रता) दी गई है।
- इसका मतलब है कि डोपिंग से जुड़े फैसले केवल NADA के विशेषज्ञ और अधिकारी लेंगे, न कि सरकार या कोई राजनीतिक नियुक्त व्यक्ति।
फायदा क्या होगा?
- भारत का एंटी-डोपिंग सिस्टम WADA के नियमों के अनुरूप होगा।
- खिलाड़ियों को डोपिंग मामलों में निष्पक्ष जांच और सुनवाई मिलेगी।
- भारत की अंतरराष्ट्रीय खेलों में साख बनी रहेगी और कोई बैन या सस्पेंशन का खतरा नहीं रहेगा।