भारत के संविधान में बदलाव क्यों होते हैं और ये कैसे किए जाते हैं? क्या हर संशोधन देश की तकदीर बदल सकता है? आज संसद में पेश किया गया, 130वां संविधान संशोधन बिल चर्चा में है-जिसे लेकर एक तरफ सियासी घमासान मचा है 30वां संविधान संशोधन बिल-2025 चर्चा में क्यों है? 130वां संविधान संशोधन बिल संसद में पेश हुआ तो बड़ी राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया. हालांकि, सरकार के मुताबिक, इसका मकसद मंत्रियों की जवाबदेही और नैतिकता को नया आयाम देना है. बिल के मुताबिक, अगर कोई केंद्रीय या राज्य मंत्री, यहां तक कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री भी किसी गंभीर आपराधिक मामले में गिरफ्तार होते हैं, जिनमें कम से कम पांच साल की जेल हो सकती है और उन्हें लगातार 30 दिन हिरासत में रखा जाता है, तो ऐसे मामले में 31वें दिन उन्हें पद से हटा दिया जाएगा.अब तक प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री के गिरफ्तार होने या जेल जाने पर इस्तीफा देने का कोई स्पष्ट नियम नहीं था. अरविंद केजरीवाल 156 दिन तिहाड़ जेल में रहते हुए भी दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहे. झारखंड के हेमंत सोरेन भी सीएम रहते जेल गए. तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी जेल में रहते हुए भी अपने पद पर बने रहे. सेंथिल को तो सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद ही इस्तीफा देना पड़ा था. ऐसे मामलों ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े किए.
सरकार-विपक्ष आमने-सामने
130वां संविधान संशोधन बिल-2025 पेश करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि, “जनता का भरोसा कायम रखना लोकतंत्र की आत्मा है. मंत्री पद पर बैठा व्यक्ति अगर संदेह के घेरे में है, तो उसे पद छोड़ना ही चाहिए.” इसके बाद विपक्ष की नेता ममता बनर्जी ने इस बिल की तुलना इमरजेंसी से करते हुए कहा कि, “यह बिल लोकतंत्र के लिए खतरनाक मिसाल बन सकता है. सत्ता पक्ष इसका गलत इस्तेमाल कर सकता है.”यानी, एक तरफ सरकार इसे जवाबदेही और पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम बता रही है, तो दूसरी तरफ विपक्ष इसे सत्ता का हथियार मान रहा है. इसपर कुछ और रोशनी डालने से पहले आपको बता दूं कि भारत का पहला संविधान संशोधन क्या था और कब हुआ था?
कब हुआ पहला संशोधन
भारत का पहला संविधान संशोधन 1951 में हुआ था. जब देश नया-नया आजाद हुआ था, तब जमींदारी उन्मूलन और अभिव्यक्ति की आजादी जैसे मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से सरकार को झटका लगा. तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 10 मई 1951 को पहला संशोधन पेश किया, जो 18 जून 1951 को लागू हुआ. इसमें तीन अहम बातें थीं—
- जमींदारी उन्मूलन को कानूनी सुरक्षा देना (अनुच्छेद 31A, 31B और 9वीं अनुसूची).
- अभिव्यक्ति की आजादी पर ‘यथोचित प्रतिबंध’ लगाना, ताकि सार्वजनिक व्यवस्था और विदेशी रिश्तों की रक्षा हो सके.
- पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का रास्ता खोलना (अनुच्छेद 15(4)).
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं, कि “पहला संविधान संशोधन भारतीय लोकतंत्र की व्यवहारिकता की पहली परीक्षा थी और उसने संविधान को लचीला और जीवंत बना दिया.”
10 बड़े संशोधन
अब बात करते हैं ऐसे 10 बड़े चर्चित संविधान संशोधनों की, जिनपर बहुत विवाद हुआ, लेकिन बाद में ये सही साबित हुए. साल 1976 में हुए 42वें संशोधन को लेकर काफी विवाद हुआ, जो इमरजेंसी के दौरान आया, संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए, मौलिक कर्तव्य जोड़े गए. शुरू में इसे तानाशाही की मिसाल कहा गया, लेकिन बाद में ये नागरिक जिम्मेदारी, कर्तव्यों और धर्मनिरपेक्षता की बुनियाद बन गया.
- 44वां संशोधन 1978 में हुआ, जो इमरजेंसी के दुरुपयोग को रोकने के लिए आया। संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार से हटाया गया. विवाद हुआ, लेकिन इससे भूमि सुधार आसान हुए.
- 73वां संशोधन 1992 में हुआ- पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा मिला, शुरू में राज्य सरकारों ने इसका विरोध किया, मगर अब यह भारत में ग्रामीण लोकतंत्र की रीढ़ बन गया है. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि- “सत्ता का विकेंद्रीकरण (Decentralization) लोकतंत्र की आत्मा है.”
- 74वां संशोधन 1992 में आया- जिसमें शहरी और स्थानीय निकायों को अधिकार दिए गए. इसपर भी काफी विवाद हुआ, मगर अब तमाम शहरों में नगर पालिकाएं स्थानीय विकास की धुरी बन गई हैं.
- 86वां संशोधन 2002 में हुआ- इसमें 6 से 14 साल के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान लाया गया. पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, “शिक्षा ही राष्ट्र निर्माण का आधार है.” इसे लेकर विवाद भी हुआ. कुछ लोगों का तर्क था कि ये चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि शिक्षा प्रदान करने के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे और संसाधनों की कमी है. संशोधन में निजी स्कूलों की भूमिका पर स्पष्टता की कमी है, जो शिक्षा के अधिकार को लागू करने में अहम भूमिका निभाते हैं. कुछ लोगों का तर्क ये भी था कि शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने से सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा, जिससे दूसरे क्षेत्रों में कटौती करनी होगी. तमाम विवादों के बावजूद,
- 86वां संशोधन शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा कदम माना जाता है. जो बच्चों को शिक्षा यानि तालीम हासिल करने का अधिकार सुनिश्चित करता है.
- 91वां संशोधन (2003)- मंत्रिपरिषद का आकार सीमित, दल-बदल रोधी कानून मजबूत. जिससे सरकारें स्थिर हुईं. इसका मुख्य प्रावधान यह है कि मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा में सदस्यों की कुल संख्या के 15% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. इसका मतलब ये कि सरकार में मंत्रियों की संख्या को सीमित कर दिया गया, जिससे गैरजरूरी खर्चों को कम किया जा सके.
- 93वां संशोधन (2005)- OBC को शिक्षा में आरक्षण. इसपर काफी विवाद होने के बाद सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगी. भारत के संविधान में ये एक अहम संशोधन था जिसने सरकारी और निजी शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षण का प्रावधान किया. इसका मकसद सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नागरिकों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक विकास को बढ़ावा देना था.
- 101वां संशोधन (2016)- GST लागू हुआ, ‘एक राष्ट्र, एक कर’ व्यापारियों ने विरोध किया, लेकिन अब टैक्स कलेक्शन रिकॉर्ड स्तर पर है. इस संशोधन ने केंद्र और राज्यों को जीएसटी लगाने और जमा करने का अधिकार दिया, जिससे एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार की स्थापना हुई. हालांकि, इसे लेकर विवाद अभी भी थमा नहीं है.
- 103वां संशोधन (2019): आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण मिला. शुरुआत में संविधान की मूल भावना पर सवाल उठा, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे सही ठहराया. भारत के संविधान में ये एक अहम संशोधन था जिसने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण दिया. इसका मकसद आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाना और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना था.
- 104वां संशोधन (2020)- SC/ST आरक्षण की समयसीमा बढ़ाई गई. सामाजिक न्याय को मजबूती मिली. इसपर भी काफी विवाद हुआ, भारतीय संविधान में एक महत्वपूर्ण संशोधन था, जिसने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में SC और ST के लिए सीटों के आरक्षण को 2030 तक बढ़ा दिया. साथ ही, एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए आरक्षित सीटों को हटा दिया गया.
130वें संविधान संशोधन बिल में क्या है खास?
130वें संशोधन की सबसे बड़ी खासियत है—मंत्रियों की जवाबदेही. अगर कोई केंद्रीय या राज्य मंत्री किसी गंभीर आपराधिक मामले में 30 दिन से ज्यादा हिरासत में रहता है, तो वह पद पर नहीं रह सकता. गंभीर अपराधों की स्पष्ट परिभाषा की बात करें तो इसमें—भ्रष्टाचार, हत्या, बलात्कार, आतंकवाद, मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स वगैरह को शामिल किया गया है.
यह प्रक्रिया स्वतः लागू होगी- यानि राष्ट्रपति या राज्यपाल को मंत्रिमंडल की सिफारिश की जरूरत नहीं होगी. अगर मंत्री कोर्ट से बरी हो जाता है, तो दोबारा पद पर लौट सकता है. यह संशोधन अनुच्छेद 75 (केंद्र), 164 (राज्य) और 239AA (दिल्ली) में बदलाव करेगा.
संविधान विशेषज्ञ प्रो. फैजान मुस्तफा का कहना है, कि “यह बिल नैतिक राजनीति की दिशा में बड़ा कदम है, लेकिन इसके गलत इस्तेमाल की संभावना को नकारा नहीं जा सकता.” तो क्या 130वां संविधान संशोधन लोकतंत्र को और मजबूत बनाएगा या फिर राजनीतिक हथियार बन जाएगा? इतिहास गवाह है और जैसा कि हमने आपको कई पिछले उदाहरण भी दिए —संविधान में बदलाव पर कई बार शुरुआत में विवाद हुए हैं, लेकिन ऐसा भी हुआ है कि उसके दूरगामी असर ने देश की दिशा तय की है.